लेखक की कलम से
मैं जंगल हूं …
समर हूं
स्वर हूं
खोया हुआ पथ नहीं
रुका हुआ रथ नहीं
गंतव्य हूं
विषपान करके हंसता हूं
स्वार्थ को त्याग कर चैन से बसता हूं
मैं जंगल हूं
©दोलन राय, औरंगाबाद, महाराष्ट्र
समर हूं
स्वर हूं
खोया हुआ पथ नहीं
रुका हुआ रथ नहीं
गंतव्य हूं
विषपान करके हंसता हूं
स्वार्थ को त्याग कर चैन से बसता हूं
मैं जंगल हूं
©दोलन राय, औरंगाबाद, महाराष्ट्र