लेखक की कलम से

भारत माँ की प्यारी हूँ …

 

स्वाभिमान से भरी हुई, मैं संस्कार से चलती हूँ।

जन सेवा की प्रहरी हूँ मैं, ज्योति पुँज बन जलती हूँ।।

मुझको आती नहीं जरा भी, ठकुर सुहाती भाषा है।

जन सेवा मैं करती जाऊँ, यह मेरी अभिलाषा है।।

मुझे न छेड़ो जल जाओगे, दबी हुई चिंगारी हूँ।

फौलादी अरमान समेटे, भारत माँ की प्यारी हूँ।।

 

मेरे पथ की बाधा बन कर, जो भी कोई आएगा।

मुझसे जो भी टकराएगा, केवल मुंहकी खाएगा।।

स्वाभिमान से चलना सीखा, है मैंने बालापन में।

लक्ष्मीबाई का साहस , उद्देश्य बनाया जीवन में।।

अपने मन की सोच बदल लो, कहने को बस नारी हूँ।

फौलादी अरमान समेटे, भारत माँ की प्यारी हूँ।।

 

झूठे आरोपों से डर कर, मैं मुंह मोड़ नहीं सकती।

कर्तव्यों की वाहक हूँ मैं, रस्ता छोड़ नहीं सकती।।

अगर जरूरत पड़ी कभी, खप्परवाली बन सकती हूँ।

हाथों में तलवार थामकर, मैं काली बन सकती हूँ।।

मुझको मत कमजोर समझना, मैं भी सम अधिकारी हूँ।

फौलादी अरमान समेटे, भारत माँ की प्यारी हूँ।।”

 

©अम्बिका झा, कांदिवली मुंबई महाराष्ट्र           

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