लेखक की कलम से
अकेली हूँ मैं …!
कौन कहता है के..?
अकेली हूँ मैं …!
तेरी यादों की सहेली हूँ मैं .
हूँ एक प्रशन अधूरा सा मैं ,
एक उत्तर अनसुना सा हूँ .
ना ओढ़ सकूँ ना बिछा सकूँ
वो प्रेम की चादर मैली हूँ मैं
किसी दिवस तो पास बैठ
हाथ थाम के… सुन मुझे
जीवन के ताने बाने मे
कहीं कभी तो बुन मुझे
खुशियाँ सदा लुटाती जो
वो एक रिक्त हथेली हूँ मैं.
कौन कहता है के..?
अकेली हूँ मैं …!
तेरी यादों की सहेली हूँ मैं .
©मंजु चौहान, नासिक