लेखक की कलम से

कैसे मुक्त करूँ! …

कैसी मुक्त करूँ , तुझे   मनःजगत से!

मुक्ति और भटकन के इस अंतर्द्वंद से!

 

देव धाम में  जीवनरस संचार किया,

नाड़ी की सेतु से तुमने  साथ दिया,

भाव से अंतस को तुमने भाव दिया,

दिल-गगरी पर सोलह सिंगार किया,

कैसे मुक्त करूं  तुझे   मनःजगत से!

मुक्ति और भटकन के इस अंतर्गत से!

 

विकल मनोरथ में तुमने  साथ दिया,

जीवन नैया को दुविधा में पार किया,

कैसी मां बंधन से खुद को मुक्त करूं

कैसे मन भटकन से खुद को मुक्तकरूँ

कैसे मुक्त करूंतुझे तुझे मनःजगत से!

मुक्ति और भटकन के इस अंतर्द्वंद से!

 

इन प्रश्नों ने आहत अन्तर्मन को किया,

अश्रुपूरित नेत्रों विकल मन को किया,

हृदय को खंडों- खंडों में अनंत किया,

रग-रग में व्यथा असह्य-असह्य दिया,

कैसे मुक्त करूं तुझे मनःजगत से!

मुक्ति और भटकन के इस अंतर्द्वंद से!

 

कैसे  माँ बंधन  से  ,मुक्त  करूं  मैं,

कैसे मन भटकन से, मुक्त करूँ मैं,

कैसे जीवन बंधन से, मुक्त करू मैं,

कैसे सांसो के क्रम से,मुक्त करूँमैं,

कैसे मुक्त करूँ तुझे मनःजगत से!

मुक्ति और भटकन के अंतर्द्वंद से!

 

 

©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता                            

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