मैं कैसी हूं …
मुझे मालूम नहीं मैं कैसी हूं
कोई आकर पूछे और टटोल कर देखे कैसी हूं
चुपचाप अंदर एक वहीं को वहीं छोड़ आई हूं
या पुरानी और नई दुनियां की भीड़ में अकेली या शामिल हो रही हूं
मुझे मालूम नहीं मैं कैसी हूं
कोई आकर पूछे और टटोल कर देखे कैसी हूं
जैसे तुम वैसे हम जैसे को जैसा वैसे को वैसा वाला हिसाब करती आई हूं?
पता नहीं क्यूं दिल को सिलने का मन करता है
दर्द वहीं रुक जायेगा क्या ये सवाल करती आई हूं
मुझे मालूम नहीं मैं कैसी हूं
कोई आकर पूछे और टटोल कर देखे कैसी हूं
एक गुमनाम जिंदगी की तरह विराम लगाना चाहती हूं
क्या तुम रुके जो मैं ऐसा कह कर गहन सी सन्न हो गई हूं
रग बदल कर रंगरेज़ होती दुनियां से एक अल्पविराम सी हो गई हूं
हर रात एक पल भर कर उम्मीद का अलाराम लगती रही हूं
सुकून की नींद हराम करवट बदल बदल कर सोती रही हूं
हर कोई किसी को समझ पाया है या समझ पायेगा
हर बार एक मुस्कान में खुद को खोद कर दफना रही हूं
गुम सी गमगीन कभी कोई तो होगा जो आंखे पढ़ कर मुझे मेरा मन को समझेगा मैं कैसी हूं?
पता लिख कर छोड़ दिया इस दौरान कोई खाता रहा था अंदर जो बाहर निकाल रही हूं
बुरे ने बुरा जाना अच्छे ने अच्छा उफ काश में ऐसी वैसी जैसी भी …. मैं कैसी हूं?
थक गई उन सवालों से ? ये गलत वो सही ये नहीं वो नहीं ? मनमानी भी नहीं सांस भी ना भरी निगाहें नीची करो ,चुप रहो ,
जो बोला गया वाही करो ?
वो घर तेरा ना ये घर मेरा?
अकेले खड़े होकर पर्वत से कूद जाऊ क्या तब शांति मिलती है?
रिश्तेदारों की मुखौटे हटाकर आंखो में पानी भर अपना समझने लगते है????
कभी खुद को उसकी जगह तो ला ओ
अपना दर्द दर्द अपना हक हक हैं हमको दरवाजे का घंटा समझकर बजा कर चल पड़ते है??
अब पूछ लेना है ये भी क्या चाहते हो??
जिंदगी जीयु या गला खुद का ही घोट लू … मैं कैसी हूं ????
तब देख पाएंगे या तब समझ आयोगे
कोई टिप्पणी कसने से पहले जिस तन लगे उस तन जाने का एहसास करती हूं
पर फ्री नहीं सबके लिए जो अपने सपनों को हकीकत भी नहीं बना सकती हूं
शादी के बाद ज़िन्दगी खत्म या उसी की ही गुलामी करती हूं
ये सवाल हर औरत की जहां में निकल कर बार बार करती हूं
किसी की ज़िन्दगी का दामोदर अपने हाथों से जकड़ कर लेती हूं?
हर बार औरत को ही गुनहगार का खिताब हूं
अब थक गई हूं हर्षिता ये सब बातें नोच कर खा चाहती हूं
मुझे मालूम नहीं मैं कैसी हूं
कोई आकर पूछे और टटोल कर देखे कैसी हूं
मुझे मालूम नहीं मैं कैसी हूं…..
मुझे मालूम नहीं मैं कैसी हूं….
क्या तुम बताओगे ?
©हर्षिता दावर, नई दिल्ली