लेखक की कलम से
होली खेलब कान्हां से …
रंग लेइके आज होली खेलब कान्हां से
लाल गुलाल से गाल मलब् भले कान्हां रहैं सकुचात्
कोई हरा रंग लेइके खड़ी कोई गोझिया भरल परात्
सखी फागुन में हां री सखी फागुन में
रानी राधिका हंसत हंसत रहीं कान्हां से बतियात
नाहिं छोड़ब् हे कान्हां तोहैं चाहे केतनउ करऽ बचाव्
सखी फागुन में हां री सखी फागुन में
बाहर गोपियां घेरि खड़ी हैं महल के मुख्य मोहार
कइसे के बहरा भगबऽ हे कान्हां केकरा से करबऽ जोहार
सखी फागुन में हां री सखी फागुन में
रोजइ मटकिया फोरत रहेला, आजइ मजा हम चखाइब्
रंग् से भरल मोरि नइकी मटकिया, हम तोहरे ऊपरां गिराइब
सखी फागुन में हां री सखी फागुन में
कहां बा टोली बोलावऽ तूं आपन देखऽ तोंहंइ के बचाये
बिना रंगें नाहिं छोड़ब् हे कान्हां बहुतइ हयऽ तूं सताये
सखी फागुन में हां री सखी फागुन में
©पंकज तिवारी, नई दिल्ली