लखनऊ/उत्तरप्रदेश
हे शिव …
तुम्हारे नाम की दीवानी
तुम्हें पाने की चाहत में
भटकती रही मंदिर-मंदिर,
मन मेरा हो आया
तुम्हारे बारह ज्योतिर्लिंग
तुम्हें स्पर्श करने की लालसा में
तुम्हें पूर्णतया महसूस कर
तुममें समा जाने की चाह में
पर पाया सब ओर
पाखण्डता, दिखावा,
वही धन की लालसा
वही काम-क्रोध की बहुलता।
मन विचलित हो उठा
वितृष्णा से भर उठा,
अब और नहीं
नहीं अब और भटकाव नहीं
हे शिव, मेरे भटकाव को
अब ठहराव दे दो।
आओ उतर आओ तुम
मेरे अन्तस् में ही,
ला दो न इस कठौती में ही
तुम्हारी अनुभूति की पावन गंगा।
©सविता व्यास, इंदौर, एमपी