लेखक की कलम से

चैती बरसात मुबारक …

 

नन्हकी बोली अपनी मां काम धाम अब छोड़ो ना
छुट्टी हो गई हर तरफ बौरा गया है कोरोना
मम्मी बोली धत्त पगली बातें फिजूल की मत करना
भूख प्यासे मर जाएंगे भय इतना दिखलाओ ना !

 

 

झोपड़ियां हैं गीली गीली इमारत में सिमटे लोग
पका अन्न सब गीला हो गया क्या लगेगा भोग
क्या लगेगा भोग चिंता बस इतना ही नाहिं
भय का भूत चढ़ा है सर पर बचेंगे कैसे लोग!

©लता प्रासर, पटना, बिहार

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