धर्म

गुरुनानक जयंती : मन के भीतर ढूंढ़ो, मिलेंगे परमात्मा…

नई दिल्ली। गुरुनानक देव कहते हैं कि बाहर से स्वच्छ हो जाने से आंतरिक शुद्धता नहीं होती है। बाहर से चुप हो जाने पर मौन उपलब्ध नहीं होता। आंतरिक शुद्धता, और शांति ईश्वर के सुमिरन से, उसके बताए रास्ते पर चल कर मिलती है।

गुरु नानकदेव जी महाराज कहते हैं कि गुरु की कृपा से अपना आप समझ आता है। एक बात तय है कि अभी पता ही नहीं है कि यह अपना आप क्या है? ‘कौन हूं मैं’, जिसने यह जान लिया, वह परमेश्वर को भी जानता है और उसकी सब तृष्णा भी बुझ जाती है। जो साधु संगत में बैठकर हरि का यश गाते हैं, वे सब रोगों से मुक्त हो जाते हैं।

गुरुदेव कहते हैं कि जो हर रोज कीर्तन करे, ऐसे व्यक्ति का जीवन गृहस्थी में रहकर भी साधु जैसा हो जाता है। यहां ‘कीर्तन’ का अर्थ ढोलकी, हारमोनियम, मंजीरे बजाकर कीर्तन करना नहीं है। मन में ही एक धुन चलती रहती है। जैसे दिल की धड़कन अपने आप चलती रहती है, इसी तरह तेरे अंदर सुमिरन चलता रहे, चलता रहे। बोले तो हरि कथा, हरि का यश बोले, अन्यथा मौन रहे। मन में हमेशा एक धुन-सी चलती रहे और काम भी चलता रहे। बोल-बोलकर कीर्तन करने की जरूरत नहीं। मन में कीर्तन चले तो स्मरण के रूप में, याद के रूप में।

गुरुदेव कहते हैं कि हमारे मन की आशा सिर्फ परमात्मा पर ही टिकी हो, किसी और पर नहीं। ऐसे मनुष्य का मृत्यु का भय, बंधन सब टूट जाता है। मन में परमात्मा की भूख हो, तो उसको दुनिया का कोई दुख रहता ही नहीं। देखिए, परमात्मा सर्वत्र उपलब्ध है। ऐसा नहीं कि किसी संत-महात्मा ने भगवान की प्राप्ति कर ली, अब बाकियों के लिए भगवान बचा ही नहीं, बात खत्म! यह सम्भव नहीं है। परमात्मा सीमित नहीं है। परमात्मा अनंत है, व्यापक है। करोड़ों जीव परमात्मा की प्राप्ति कर लें, तो भी बाकियों के लिए परमात्मा है, वह खत्म नहीं हो जाता। जैसे सूरज की रोशनी एक समय में सारे लोग ले सकते हैं। अरबों-खरबों कितने भी लोग हों, सूरज को कोई फर्क नहीं। उसकी रोशनी वैसी ही चमचमाती रहती है, उतनी ही तेजस्वी होती है।

परमात्मा कभी चुकता नहीं। जिसके चित्त में परमात्मा है, वह संत हमेशा स्थिर रहता है। वह कभी डोलता नहीं है, किसी बात पर भी घबराता नहीं। शांत-चित्त मनुष्य को संसार की कोई वस्तु परेशान नहीं कर सकती। जो संसारी है, अज्ञानी है, वह तो हर चीज से परेशान हो जाता है। गर्मी ज्यादा हुई तो परेशान, सर्दी ज्यादा हुई तो परेशान, महंगाई बढ़ी तो परेशान। संसारी आदमी हर स्थिति में परेशान रहता है, लेकिन संत हर स्थिति में शांत रहते हैं।

जिस पर प्रभु कृपा करते हैं, वह किसी से नहीं डरता, उसे डरने का कोई कारण नहीं। सच्चे को सच्चे पिता का सहारा मिल जाए तो वह खुद ही खुद का सहारा बन जाता है। यह बहुत ही गहरी बात है, गूढ़ ज्ञान की, रहस्य की बात है। गुरुदेव कहते हैं कि जैसा परमात्मा है, वैसा ही मुझको दिखा। यह नहीं कह रहे कि कैसा है और कैसा दिखा। वह कह रहे हैं कि जैसा है, वैसा दिखा। उसका कार्य है यह सृष्टि। परमात्मा अपनी ही बनाई इस कार्यरूप सृष्टि में खुद समाए हुए है। अपनी बनाई सृष्टि में ही है, उससे अलग नहीं, उससे भिन्न नहीं।

श्रीगुरु महाराज कहते हैं कि ‘सोधत सोधत सोधत सीझिआ, गुर प्रसादि ततु सभु बूझिआ।’ सोधत माने शोधन करना। शोधन करना है बुद्धि का। यह बुद्धि माया, ममता, अज्ञान में गंदी हो गई है, मैली हो गई है। इसका शोधन करना है। इसका शोधन करने पर परम तत्त्व की समझ आ जाएगी। परम तत्त्व है परमात्मा। यह गहन वेदांत की बात है। गुरुदेव कहते हैं कि जब देखता हूं तो मुझे सबका मूल दिख जाता है। आप देखते हो औरत, आदमी, पशु, जानवर, पेड़, पत्थर, पहाड़, तारे, सितारे, नक्षत्र, लेकिन जब गुरुदेव देखते हैं, उनको उस वस्तु का मूल दिखाई देता है। जिससे यह सबकुछ उत्पन्न हुआ है, वह मूलतत्त्व उन्हें दिख जाता है। यह सारा जगत जिस परमात्मा से और जिस परमात्मा में बना है, एक दिन उसी में समा जाएगा। उसी परमात्मरूप मूलतत्त्व को वह देखते हैं। वही सूक्ष्म भी है और स्थूल भी वही है।

आनंद तो ज्ञान में ही है, इसलिए ज्ञान प्राप्त करें और आनंद में रहें। आपके जीवन में सुख का, नाम का, भक्ति का, ज्ञान का संगीत हो, क्योंकि पूरा सद्गुरु आया है, पूरे सद्गुरु की कृपा बरसी है। उनके स्वरूप के नूर को याद करें, क्योंकि श्रीगुरु नानकदेव का गुरुपर्व है।

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