लेखक की कलम से
अन्नदाता के हिस्से में दु:ख और संताप …
देख जरा गौर से ऐ-भगवान
क्या सच यह ही बसंत है
और अगर है तो ये कैसा बसंत है
तमाम खुशियों, आशाओं, अभिलाषाओं का
क्यों किसी की ये अन्त है ?????
पल -पल सींचा था जिसने खून-पसीने से अपने
अन्न के इस कण-कण को
क्षण भर में मिटा दिया तुमने
उसकी मेहनत के तृण-तृण को
क्यों गरीबी का दंश झेलता है अन्नदाता ही
यहां जीवन पर्यन्त है
ये कैसा……..
रूठ गये उसकी आँखों के सपने
टूट गये संग-संग उसके अपने
भंवर निराशा का चहुंओर अनन्त है
ये कैसा ………
सब की भूख मिटाने वाला
तकता है क्यों एक -एक निवाला
ऐसा दूख भरा क्यों इसका अन्त है ????
ये कैसा…….
©अनुपम अहलावत, सेक्टर-48 नोएडा