विषाद …
दिल के टूटने पर आवाज़ नहीं आती
खुशियाँ राख बन कर उड़ने लगती है …..
पर अरमान सुलगाने की परवेज नहीं होती।
दुनिया को जितना प्यार किया
झूठे बंधन में उलझते गए।
एक एक आँसू पीकर भी मुस्कुरानेका हुनर सीख रहे है।
हम, दिल में दफन कर अपनी पहचान
औरों को खुश करने की कला सीख रहे हैं।
हम……….
प्यार के बदले ताने छींटा कशी सुख जिनको देना चाहा
उनहोंने ही मुख मोड़ लिया घाव दिल के गहरे थे।
रिस रिस कर नासूर बन गए।
फिर भी मुस्कुराना सीख गए हम
आज तक जो चाहा कभी न मिला।
जिंदगी तुझसे न कोई शिकवान गिला।
आँखों की नमी को हंसी में बदल कर
औरों को हंसाने का हुनर सीख रहे हैं।
मुँह पर वाह करने वालों ने
पीठ पीछे गुनाहगार बना डाल।
आज वो ही हमारे गुणगान का ढोल पीट रहे है।
उलझनों के भंवर में कौन किसका है
ठेस लगी तो वफा ढूँढ रहे है।
बेनाम जिंदगी तेरी गलियों में
खुशी का मंजर ढूँढ रहे है।
आजमायिश करो न मेरी वफा की
वफादारी में हमने अपना बहुत कुछ खो डाला।
चैन सुकून सब न्यौछावर कर बेवफाई सही हमने
उनके न लौटने का लम्हा काटों की तरहा सीना चीरता रहा
वो हमारी वफाओं को नासमझी का करार दे डाले।
हम वफादारी की चादर ओढ कर जिलत सहते रहे।
जिंदगी तेरे सफर ने मुझे सच का आईना दिखलाया
और हम झूठ की धूल हटा न सके।
लफ्जों की चुभन ही होठों को सी कर
महसूस कर रहे है।
टूटे अरमान,
ख्वाब लिए तेरे वादे की तुरपाईकर अपने जख्मों को सी रहे हैं।
©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा