लेखक की कलम से

अक्षर-अक्षर पाना …

जीवन है एक रहस्य

खुद ही खुद को पाना है।

 

जो है जैसा वो वैसा ही

एक दिन सामने आना है।

 

सामने हो जो कठिन डगर

कर साहस बढ़ते जाना है।

 

दृढ़ हो इच्छा सधे कदम हों

मंजिल सामने आना है।

 

जीवन मानो जल धारा जैसे

अविरल बहते जाना है।

 

क्या चोटी क्या घाटी समतल

आखिर सागर में मिल जाना है।

 

 

क्या बात करें अक्षि अक्षर की

अब अक्षर अक्षर पाना है

अब अक्षर अक्षर पाना है।

 

 

©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता

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