लेखक की कलम से

पदयात्रा के लिए विख्यात हैं गांधीवादी विचारक राजगोपाल: गांधी जयंती पर देश भर में सौ से अधिक जगहों पर पदयात्राएं …

प्रसून लतांत । राजगोपाल पीवी देश विदेश में थोड़े से बचे शीर्षस्थ गांधीवादियों में से एक हैं। उन्होंने अपना सारा जीवन गांधी जी के विचारों के अनुकूल दुनिया बनाने में झोंक दिया। उन्होंने युवावस्था में ही तय कर लिया था कि वे गांधीवाद के रास्ते से आगे बढ़ेंगे। पिछले पचास सालों में राजगोपाल पीवी ने देश और दुनिया में गांधी के विचारों के अनुसार अपने प्रयासों की लंबी लकीर खींच दी। उन्होंने अनेक संस्थाओं का गठन किया और गांधीवाद में नवाचार सृजित करते आ रहे हैं। उन्होंने जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों, दलितों और वंचितों के हक को सुनिश्चित करने के लिए अनथक संघर्ष किया। उनकी समस्याओं के समाधान के लिए उन्होंने गांधी जी की दांडी यात्रा और आचार्य विनोबा भावे की भूदान यात्रा की तरह अनेक पदयात्राएं कीं और सरकारों को आम जनता के हित में निर्णय लेने के लिए विवश किया। उन्होंने पिछले साल दिल्ली से जेनेवा तक शान्ति और न्याय के लिए अंतरराष्ट्रीय पदयात्रा शुरू की थी। लेकिन कोरो ना की वजह से उन्हें अपनी पदयात्रा आर्मेनिया में रोकनी पड़ी।

राजगोपाल पीवी गांधीयन जगत के सर्वोच्च संस्था के रूप में शुमार किए जाने वाले सर्वोदय समाज सम्मेलन के संयोजक हैं। उन्होंने देश भर के सामाजिक कार्यकर्ताओं से अपील की है कि उन्होंने गांधी जयंती के पूर्व से ही देश भर में सौ से अधिक जगहों पर पदयात्राएं करने की अपील की है।

साथ ही उन्होंने बताया कि आगामी सर्वोदय समाज सम्मेलन का स्वरूप अंतरराष्ट्रीय होगा और इसमें देश विदेश के हजारों युवक भागीदार होंगे। राजगोपाल कहते हैं कि विनोबा और जय प्रकाश के समय सर्वोदय समाज का आंदोलन आंधी तूफान की तरह प्रवाहित होता था। उनकी कोशिश है कि देश दुनिया में फ़िर से आंधी और तूफान की तरह सर्वोदय समाज का आंदोलन हो, ताकि दुनिया के आम से आम आदमी को शांति और न्याय मिले।

समाजसेवा के क्षेत्र में उतरने के पहले ही उन्होंने सेवाग्राम स्थित महात्मा गांधी की कुटिया में रह कर  महात्मा गांधी के सिद्धांत, विचार, ग्राम स्वराज्य, स्वावलंबन, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, विकेंद्रीकरण, अहिंसा आदि विषयों पर गहरा अध्ययन किया। इसके बाद औद्योगिकीकरण की राह पर चल पड़े भारत के लिए गांधी जी के सिद्धांतों का प्रयोग ही राजगोपाल पीवी के लिए एकमात्र विकल्प के रूप में दिखाई दिया। उनको यह बात समझ में आ गई कि समाज को हिंसा प्रति हिंसा से मुक्ति के लिए भय मुक्त और भूख मुक्त समाज रचना के लिए नौजवानों को  संगठित करना होगा। उन्होंने इसके बाद मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं को संगठित करना शुरू किया। आज उनके द्वारा स्थापित एकता परिषद के नेतृत्व में देश के 11 राज्यों के एक सौ से अधिक जिलों में आदिवासियों, दलितों और वंचितों के हक में युवा समाज कर्मी पूरी तरह अहिंसक समाज रचना मै जुटे हुए हैं।

वर्ष 1972 और 1976 में चंबल घाटी में डाकुओं के समर्पण की घटना हुई। उस समय गांधी जी की तस्वीर के सामने चंबल के खतरनाक माने जाने वाले 654 डाकुओं ने आत्म समर्पण किया। इसके लिए जमीनी स्तर पर राजगोपाल पीवी के किए गए कार्यों ने अहम भूमिका निभाई। समर्पण के बाद डाकुओं के पुनर्वास के लिए काम करना महत्वपूर्ण चुनौती थी। बागियों से जेल में मुलाकात करना, उनके रिश्तेदारों से संपर्क करना,शासन से मिल कर पुनर्वास के कामों को अंजाम देने जैसी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। राजगोपाल पीवी गांधी जी के जिस अहिंसा के शस्त्र को लेकर आए थे,वह बागियों के समर्पण के बाद पूरा हो गया था। वे इतने पर ही नहीं रुके। वे गांव गांव के युवक और युवतियों को पहले प्रशिक्षित कर फिर उनको संगठित करते रहे।

वंचित समुदायों की भूमि संबंधी समस्याओं की जानकारी एकत्र करने,उनके समाधान के विभिन्न पहलुओं को सरकार के सामने पेश करने, शासन के ऊपर व्यापक जन दबाव करने और वंचित समुदायों को भूमि और आजीविका के अधिकार के प्रति जागरूक करने के लिए राजगोपाल पीवी ने पदयात्रा और संवाद यात्रा की। राजगोपाल पीवी का कहना है कि पदयात्रा एक अहिंसक प्रयास है और इसके जरिए वंचित समुदायों की हालत को करीब से समझने और संगठन के साथियों से प्रत्यक्ष संवाद करने का अवसर मिलता है। यह समाज परिवर्तन के लिए अहिंसक जन आंदोलन खड़ा करने का बेहतर माध्यम है। उनके द्वारा विभिन्न राज्यों में पदयात्रा करने का ही परिणाम था कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के राज्य सरकारों ने दलितों और आदिवासियों की भूमि समस्याओं के समाधान के लिए विशेष कार्यदल का गठन किया, जिससे बहुतों को जमीन मिली।

राजगोपाल पीवी का मानना है कि सामाजिक परिवर्तन का जन्म जन आंदोलन के गर्भ में ही संभव है। जन आंदोलन से अन्याय,अत्याचार,हिंसा और भ्रष्टाचार मुक्त समाज रचना कर गांधी जी के सपनों को साकार किया जा सका है। राजगोपाल इसके लिए जागरूक लोगों के संगठन निर्माण पर जोर देते हैं। इससे सामाजिक असमानता और भेदभाव ख़तम किया जा सकता है। समाज में व्याप्त हिंसा को दो तरह से परिभाषित करते हुए राजगोपाल कहते हैं कि समाज में एक हिंसा मारपीट,लूट और हत्या तक सीमित है और दूसरी सबसे बड़ी हिंसा ढांचागत हिंसा है। ढांचागत हिंसा से समाज का बहुत बड़ा वर्ग अपने अधिकारों से वंचित है। ढांचागत हिंसा को खत्म कर हम सामाजिक हिंसा को खत्म कर सकते हैं। इन्हीं विचारों से प्रेरित होकर प्राकृतिक संसाधनों के समान बंटवारे और उस पर वंचित समुदायों के नियंत्रण की वकालत करते हुए व्यापक जन आंदोलन करते अा रहे हैं। राजगोपाल लोगों को मछली पकड़ कर नहीं देते बल्कि उनको खुद मछली पकड़ना सिखाते हैं ताकि लोग खुद अपने अधिकारों के लिए संघर्ष के सकें। आज राजगोपाल पीवी द्वारा प्रशिक्षित हजारों ग्रामीण मुखिया अपने समुदाय का नेतृत्व कर रहे हैं। वे आज भी समुदाय की समस्याओं को लेकर अहिंसक तरीके से आंदोलन के सरकार पर दबाव बनाते रहते हैं।

राजगोपाल ने नेतृत्व निर्माण कर पहले स्थानीय स्तर पर फिर इसके बाद क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर संगठन बनाया। अब उन्होंने एकता परिषद के संगठन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित किया है। उन्होंने जमीन के सवाल पर दक्षिण अमेरिकी सहित तीसरी दुनिया के कई देशों का दौरा किया। उन्होंने लैंड फर्स्ट इंटरनैशनल का गठन किया। वे नेपाल, बांग्लादेश,श्रीलंका और फिलीपींस में भी समय समय पर जाते हैं और प्राकृतिक संसाधनों पर वंचितों के अधिकार को लेकर चलने वाले आंदोलनों का मार्गदर्शन करते हैं। वे दक्षिण एशिया में अहिंसा के प्रचार प्रसार और शान्ति की स्थापना के लिए साउथ एशिया पीस अलायन्स के जरिए अनेक प्रयास भी करते अा रहे हैं। अब वे  सर्वोदय समाज सम्मेलन के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में देश विदेश के युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने में जुटे हैं।

Back to top button