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सुधियों से समाधि तक….!! अमृतलाल जी वेगड़ …

दुर्ग / छत्तीसगढ़ (विद्या गुप्ता) । नर्मदा की लहरों पर बहते-बहते, सहसा एक नाम ठहर गया……….. चलते चलते एक कारवां रुक गया……….. बहती हवा स्तब्ध हुई………. लहरें चित्र की तरह जड़ हो गई………. नर्मदा के परिक्रमा पथ पर वर्तमान उकेरता, अपने पद चिन्हों से नर्मदा का स्तवन करता एक प्रखर व्यक्तित्व सहसा कथा बन गया। सरल सर्जना करती कलम, इतिहास में तब्दील हो गई। दौड़ती तारीखो में से एक तारीख, 6 जुलाई, ने घोषणा कर दी-“अमृत लाल बेगड नहीं रहे “।

जीवन और मृत्यु अकाट्य सत्य हैं फिर भी क्यों मृत्यु की सूचना ही अवसाद से भर देती है मन भीग …… कर स्मृतियों की धारों में डूब जाता है…… काल पीछे मुड़कर देखने लगता है जैसे- ‘क्या कहीं भूल हुई’ सचमुच मृत्यु के अकाट्य सत्य के बावजूद मन अपने प्रिय का चला जाना स्वीकार नहीं कर पाता आज जैसे ही खबर मिली कि अमृत लाल बेगड़ … नहीं रहे, मन में पहली प्रतिक्रिया हुई ‘नहीं’…’ अरे अभी कल ही तो बात हुई थी,….. अरे अभी पिछले माह तो उनसे मुलाकात हुई थी….. जैसे उनका जाना काल के कैलेंडर में नहीं होना था.

नर्मदा के प्रिय पुत्र अमृत लाल वेगढ़ आज चीर निद्रा में विलीन हो गए…. शायद बाहें फैलाए मां नर्मदा की गोद भी व्याकुल हो पुत्र को समेटने दौड़ पड़ी होगी…. यात्रा के वे सारे पथ भी आज व्याकुल होंगे, जिन पर से गुजर कर वेगड़ ने नर्मदा परिक्रमा पूरी की. क्योंकि, इतने धीमे पांव, इतने प्यार से पत्थरों को थपकते हुए…. कांटों को सहलाते हुए….. लहरों से वार्तालाप करते हुए किसी ने इतने हौले से नर्मदा की परिक्रमा नहीं की होगी. आरंभ से अंत और अंत से पुनः आगाज तक दो बार नर्मदा की परिक्रमा करने वाले वेगड़ ने उसी यात्रा पथ पर अनुभव और अनुभूति के कितने कितने अध्याय लिखे.

एक बार नियम के मारे एक कृशकाय साधु की (3 साल 3 माह 13 दिन की) भागती दौड़ती कष्ट भरी यात्रा को देखकर वह सहज भाव से मुस्कुराए और बोले- यह ‘ तामसी- यात्रा’ है. जिस यात्रा में पथ से वार्तालाप ना हो…जंगलों से रिश्ते ना बने…. गांव और ग्रामीण परिवेश में भीग कर, मन खुद भी एक ग्रामवासी ना हो जाए…… तो भला यात्रा कैसी !! नर्मदा के प्रति देवोपम श्रद्धा के साथ ही जन्मदात्री मां की सी संवेदना से भरा उनका प्रेम नर्मदा को सिर्फ मां बनने पर मजबूर कर देता था. मां नर्मदे की स्वरलहरी उनके मुख से लेकर आत्मा तक सदैव बिहार करती थी. नर्मदे हर… नर्मदे हर..!!

उम्र के उतार पर जहां मनुष्य थककर विश्राम करने की सोचता है वहां , नर्मदा से परिक्रमा का अनुरोध करते वेगड़ कहते हैं- ‘ मैं पहले बूढ़ा हुआ, अब सेवानिवृत्त होने के बाद जवान हो गया हूं पहली यात्रा का पहला कदम उन्होंने अकेले ही उठाया बस एक मित्र को साथ ले निकल पड़े महल अटारी सुख संपदा प्रतिष्ठा भय और आशंका सब को त्याग कर वह अकेले ही दौड़ पड़े बस फिर तो लोग मिलते गए कारवां बनता गया पहली यात्रा में पत्नी श्रीमती कांता वेगड़ नहीं चल पाई थी अतः उन्होंने दूसरी परिक्रमा सपत्नीक की . इतना ही नहीं उन्होंने नर्मदा की सहायक आठ नदियों मेंसे कुछ नदियों की भी परिक्रमा की. वह कहते हैं- कालांतर में जब आपको एक पति-पत्नी झाड़ू और टोकरी लेकर नर्मदा का पथ बुहारते मिल जाए तो पहचान लेना वह कांता और मैं ही हूं

तीन विश्व स्तरीय कृतियों के लेखक अमृत लाल कैसे भुलाए जा सकेंगे !!….’ सौंदर्य की नदी नर्मदा’ उनकी प्रथम कृति थी, दूसरी’अमृतस्य नर्मदे ‘ और तीसरी पुस्तक ‘तीरे- तीरे नर्मदा’ . यह विश्व को उनकी ऐसी सौगात है, जिसे हम केवल हमारी नहीं कह सकते क्योंकि लगभग भारत की चौदह भाषाओं में और विश्व भाषा अंग्रेजी में अनुवादित इन कृतियों पर उन सबका पूरा हक है जो नर्मदा से जुड़े हैं।

बहुत बड़े परिवार, भव्य भवन, आर्थिक संपन्नता के बावजूद सादा जीवन उच्च विचार के समर्थक थे. वेगड़ अत्यंत सादगी पसंद व्यक्ति थे. सादा जीवन, सहज विचार, सामान्य स्वरों में गहन को प्रस्तुत करती उनकी सहजता ही उनका परिचय देती थी. लेखक के साथ उनका चित्रकार हर परिवेश को आंखों से पीकर चित्रकला में ज्यों का त्यों उतार देता था . उनके बनाए चित्र व कोलाज आज सैकड़ों पत्रिकाओं के मुख्य पृष्ठ पर की शोभा बन चुके हैं कागजों के रंगीन टुकड़ों से चित्र के कोलाज सजाती कला आज अमर हो उनके अंतस का बयान बन गई. वेगड़ के सहज और सरल हुए विचारों ने उनका परिवार सुदूर विश्व परिधि तक फैला दिया उनके कई विदेशी विद्वान मित्र भी उनके इस विशाल परिवार के सदस्य बन गए.

मैं अक्सर राहुल सांकृत्यायन और वेगड़ के यात्रा वृतांत पढ़ा करती थी, वह सोचा करती थी….’ क्या कभी मुझे भी ऐसी रोमांचक यात्रा करने का अवसर मिलेगा’. ईश्वर, जो मेरी उस इच्छा के समीप ही खड़े थे, मुझे तुरंत अवसर दिया. मुझे ज्ञात हुआ अपने ही मोहल्ले में रहने वाले राइस मिलर मगर शौकिया फोटोग्राफर कांति भाई सोलंकी हर वर्ष वेगड़ के साथ नर्मदा परिक्रमा पर जाते हैं. बस, फिर क्या था मैं उनकी कुछ परिक्रमा यात्राओं में भागीदार बनी. मुझे जीवन का अलभ्य वरदान मिला. आज उनके ‘तिरोहन’ की खबर ने मेरी चेतना को झकझोर कर रख दिया. वे ध्वनियां…… वे आवाजें….. स्पर्श और नेह के आशीष सब पुन: आकार ग्रहण कर मेरे मानस में सजीव हो उठे. कितने पल उनके सानिध्य में गुजारे, कितने ही आश्वासन और आशीष की थपक मेरे सिर पर ठहरी हुई है.

 अभी कुछ समय पूर्व ही मैं इंटेक की सह संयोजिका बनी और हमने भिलाई स्टील प्लांट, रोटरी क्लब और इंटेक के सहयोजन से भिलाई के कला मंदिर के विशाल हॉल में वेगड़ पर एक भव्य कार्यक्रम रखा जिसमें वेगड़ अपने यात्रा संस्मरण सुना रहे थे और हम मगन मन सुन रहे थे. बस, ऐसे ही में काल के हरकारे ने कहा -“अमृत लाल वेगड़ को जाना है” और बे उसी सहजता से उठ कर चले गए. अभी भी वातावरण में उनकी सहज वाणी सुनाई दे रही है जैसे अभी वह कहेंगे -“नर्मदे हर……… नर्मदे हर!!! “

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