लेखक की कलम से
पहली पाठशाला … .
कोई पूजे काकर पाथर कोई मधुशाला है
मेरी खातिर माँ ही मेरी मंदिर और शिवाला है
मोल नहीं मां की ममता का उसका कोई तोड़ नहीं
ईश्वर की कृतियों में अब तक माँ ही सबसे आला है
माँ ही जन्नत माँ ही खुशबू मां घर की रौनक होती
मां से ही होता घर घर में हर दिन नया उजाला है
कौन तुम्हारा पालन हारा किसने जीवन दान दिया
चलने वाली सांसो की मां ही इकलौती माला है
जीवन के संघर्षों को हंस कर तुमने पार किया विश्व गुरु कितने बन जाएं मां पहली पाठशाला है
©डॉ रश्मि दुबे, गाजियाबाद, उत्तरप्रदेश