भावना …
मचा दी है !
गुरुदेव ने पूछा – कैसी भावना,
मैंने कहा – प्रेम भावना,
मैंने कहा- बालपन में विवाह बंधन में बंध गई थी मैं, प्रेम का अर्थ भी नहीं समझती थी मैं, आज प्रेम समझ आया तो उम्र निकल गई !
गुरुदेव मैं क्या करूं कि इस प्रेम भावना रूपी व्याधि से छूटकारा मिले !
गुरुदेव मुस्कुराए वो तो ठहरे अन्तर्यामी सब समझ रहे थे !
उन्होंने इशारा किया बैठो !
मैं। – बैठ गई !
गुरुदेव ने कहा – वृन्दावन चली जाओ वहां बांके बिहारी नाम के वैद्य हैं उन्हीं के पास तुम्हारा उपचार औषधि दोनों है !
बस फिर क्या था मैं निकल पड़ी वृंदावन ! वृंदावन पहुंच बांके बिहारी के पास पहुंची ! उन्होंने आने का प्रयोजन पूछा !
मैंने प्रयोजन बताया ! प्रेम भावना नामक व्याधि हो गई है ! गुरुदेव ने आपके पास भेजा है उपचार औषधि के लिए ! थोड़ी देर वो मौन थे ! अपना प्रस्ताव रख कर मुझे भी शांति मिल गई थी ! मेरी मनोदशा को देखकर क्षण भर की देर ना करते हुए बांके बिहारी ने मुझे गले लगा लिया !
विश्वास कीजिए मेरी प्रेम भावना को परमानंद नामक औषधि मिल गई थी ! बांके बिहारी की बांहों में मैं पुलकित, आनंदित, हर्षित, प्रफुल्लित हो रहीं थी ! बांके बिहारी प्रेम औषधि मेरे तन पर लेप रहे थे !
भावना का इतना सुंदर उपचार अन्यत्र कहां ! और लोग चौरासी लाख योनियों के चक्कर काट रहे माया मोह भ्रम में फंसकर !
©क्षमा द्विवेदी, प्रयागराज