बाघों के संरक्षण और आबादी बढ़ाने की कवायद : बाघिन प्रैग्नेंट है या नहीं, अब यह रिपोर्ट देगी प्रैग्नेंसी किट…
जबलपुर। टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश में बाघों के संरक्षण और उनकी आबादी बढ़ाने पर सरकार द्वारा खासा जोर दिया जा रहा है. इसके लिए कई प्रोग्राम्स और रिसर्च किये जा रहे हैं. इसी के चलते अब बाघिन के गर्भवती होने की जांच के लिए एक किट तैयार की जा रही है. इससे बिना बेहोश किये ही पता लगाया जा सकेगा कि बाघिन गर्भवती है या नहीं. इसके लिए रिसर्च जारी है. यदि सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही खुशखबरी मिल जाएगी. ये रिसर्च बाघों की सेहत और सुरक्षा के लिए मील का पत्थर साबित होगा.
दरअसल, मध्य प्रदेश सरकार ने जबलपुर की नानाजी देशमुख वेटरनरी साइंस यूनिवर्सिटी को एक प्रोजेक्ट पर काम करने का जिम्मा सौंपा है. इस प्रोजेक्ट पर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक और डॉक्टर रिसर्च में जुट गए हैं. बाघिन के गर्भवती होने का समय पर पता चलने का ये फायदा होगा कि उसे अच्छा पोषण आहार दिया जा सकेगा और उसे सुरक्षित रखकर बाघों के आपसी झगड़े से बचाया जा सकेगा. ज्ञात हो कि बाघिन का प्रसव काल 100 से 105 दिन के बीच का होता है. ऐसे में यदि उसे 25वें दिन से गर्भवती होने की जानकारी मिल जाए, तो बाकी बचे 75-80 दिन उसकी अच्छी देखभाल की जा सकती है. इसका सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि शावकों की मृत्युदर कम करने में मदद मिलेगी.
यूरिन से होगी प्रैग्नेंसी की जांच
इस प्रोजेक्ट पर वैज्ञानिकों द्वारा बहुत हद तक काम भी किया जा चुका है. बाघिन की प्रैग्नेंसी की जांच के लिए बाघिन का यूरिन-स्केट चाहिए होगा. यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. एसपी तिवारी के मुताबिक यह प्रोजेक्ट 2021 से 2023 के लिए मिला है. बाघिन के गर्भवती होने का पता तब चल सकेगा, जब वह घूमती है. इसकी जांच के लिए बाघिन के यूरिन और स्केट के सेम्पल लिए जाएंगे. फिर इन नमूनों को एंजाइम इम्युनो तकनीक के ‘मैनिफेस्टेशन ऑफ फेटल एंडोक्राइन हार्मोंस’ से जांचा जाएगा. इसके आंकलन से पता चल जाएगा कि बाघिन गर्भवती है या नहीं.
बाघिन और उसके बच्चे की सेहत और सुरक्षा दोनों में सुधार
गर्भावस्था के समय बाघिन शिकार नहीं कर पाती है. इसका असर उसकी और उसके होने वाले बच्चों की सेहत पर पड़ता है. यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. एसपी तिवारी के मुताबिक इस प्रोजेक्ट के लिए 15 लाख रुपये अलॉट किये गए हैं. अब इसे कैसे और कहां खर्च करना है, इसकी पूरी रूपरेखा तैयार की जा रही है. देश में ऐसा प्रोजेक्ट पहली बार आया है. अगर ये पूरी तरह सफल हो जाता है तो मध्यप्रदेश में न केवल बाघों की संख्या में भारी इजाफा होगा, बल्कि उसकी बेहतर सुरक्षा भी की जा सकेगी