धरणीधर बेसुध हैं …
अचेत पड़े हैं धरणीधर
खाकर दुष्ट के बरछी का घात।
विकल विलाप और सुधबुध खोकर
रघुनाथ बैठे हैं वेसुध आप।।
कौन बताये हल मूर्छा का
जामवन्त जी भी साधे मौन।
पत्थर तैराने की बात होती तो
नल नील पर सबका ध्यान।।
किला अंदर वैद्य सुषेन हैं
कौन करे लाने का इंतजाम।
पहरे पर पहरा बैठा है
कैसे हो बुलाने का इंतजाम।।
मिलों दूर वो संजीवनी
जिसको लाना है कठिन काम।
एक लखन की बात नहीं है
फँसा हुआ है लाखों का प्राण।।
कालनेमी का माया भ्रम है
कठिन डगर वो द्रोण पहाड़।
समय कम है लाने को
संजीवनी का असीमित भण्डार।।
धीर धरो रघुवर तुम
पवनपुत्र है आपके पास।
संताप हरे जो जन मानस का
अतुलित बल है इनके पास।।
नव किरण रवि का लेकर आएंगे
नव जीवन में ऊष्मा संचार।
कष्ट कटेंगे जन समुदाय का
संजीवनी वाला द्रोण पहाड़।।
लहर खुशी के तब फैलेंगे
धरणीधर के जगने के बाद।
प्रभुराम के धनुष टंकार का
जबाब न होगा अधमी के पास।।
©कमलेश झा, फरीदाबाद