लेखक की कलम से

तृतीय मां चंद्रघंटा के चरणों में समर्पित…

तुम्हारी शरण में मां बसर चाहती हूँ,

कृपा की जरा सी मां नजर चाहती हूँ!

तुम्हारी शरण में मां बसर चाहती हूँ,

कृपा की जरा सी मां नजर चाहती हूँ!

 

दुखों में हूँ डूबी मां ये सब बीत जाये,

महकती हुइ मां सहर चाहती हूँ,

तुम्हारी शरण में मां बसर चाहती हूँ,

कृपा की जरा सी मां नजर चाहती हूँ!

 

मां पूरी  कर दो  तमन्ना   हमारी,

तेरी दृष्टि की मां एक लहर चाहती हूँ,

तुम्हारी शरण में मां बसर चाहती हूँ,

कृपा की जरा सी मां नजर चाहती हूँ!

 

बहुत ठोकरें मैनें खाई जहाँ में,

नहीं कोइ दूजा मां भँवर चाहती हूँ,

तुम्हारी शरण में मां बसर चाहती हूँ,

कृपा की जरा सी मां नजर चाहती हूँ!

 

जो माँगो वो मिलता है चौखट पे तेरे,

सदा भक्ति तेरी मां अमर चाहती हूँ,

तुम्हारी शरण में मां बसर चाहती हूँ,

कृपा की जरा सी मां नजर चाहती हूँ!

 

करो मेरा उत्साह बर्धन मेरी मां,

क्षमा मैं तुम्हारा ही दर चाहती हूँ,

तुम्हारी शरण में मां बसर चाहती हूँ,

कृपा की जरा सी मां नजर चाहती हूँ!

-क्षमा द्विवेदी, तीर्थ राज प्रयाग

Back to top button