लेखक की कलम से

“शिकायत”

“शिकायत”

“आपके बेटे ने मुझे परेशान करके रख दिया है । आप अपने बेटे को समझा लीजिए वरना किसी दिन मैं अच्छी तरह खबर ले लुंगी तो मुझे मत दोष दीजिएगा । ” गुस्से से उबलते हुए मन्नू बोली ।
“वह अब बड़ा हो गया तो मेरी कहाँ सुनता है । तुम्हीं बताओ, मैं क्या करूँ ? ” उन्होंने भी अपना दुखड़ा रोया ।
“आपका बेटा है , आपकी बात नहीं सुनेगा तो किसकी सुनेगा ! आज भी आपके बेटे ने मेरे बेटे के कान खींचे हैं । मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती । आज तो आपको कुछ करना ही होगा । ”
“अच्छा ऐसा …! उसने अनुज के कान ऐंठे ? आने दो आज उसकी खबर लेती हूँ ।” वो सचमुच गुस्से में नजर आ रहीं थीं ।
मन्नू के हृदय को ठंढक मिली तो वह आराम से बैठ गई और माँ गुस्से से भरी अपने पुत्र का इंतजार करने लगीं। जैसे ही उनके बेटे ने घर में कदम रक्खा उन्होंने सीधे उसके कान पकड़े और चिल्लाईं,
“तुमने अनुज को क्यों मारा ? ”
” अरे माँ , सुनो तो …अनुज बहुत ऊधम कर रहा था इसीलिए …”
अभी वह अपनी बात पूरी करता कि माँ ने कान ऐंठते हुए कहा, ” तूने बचपन में कम शैतानियाँ कीं हैं क्या ?मैंने तो तुझे नहीं मारा कभी । ”
” बचपन को छोड़ो ,तुम तो अभी भी मार रही हो ।” कान छूटते ही उनके पुत्र ने मन्नू को घूरते हुए कहा, ” मेरी माँ से मेरी शिकायत करती हो, देख लूंगा तुम्हें ।”
तभी माँ ने चप्पल तानते हुए चेतावनी दी, ” खबरदार जो मेरी बहू को धमकाया तो बहुत मारूँगी ।” मन्नू तुरंत सासूमाँ के पीछे छुप गई । वही तो उसकी शरणस्थली थी, जहाँ वह सदा सुरक्षित रहती थी ।
©अमृता_शर्मा

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