लेखक की कलम से

लो बसंत ऋतु आई ….

 

लो बसंत ऋतु आई,

फूली सरसों,

धरती हुई बसंती,

ओढ़ चुनरिया पीली,

धरती ने ली अंगड़ाई,

लो बसंत ऋतु आई।

 

सेमल फूले,

अमलतास फूले

फूले फूल-पलाश,

गुलमोहर ने,

ओढ़ी चुनरिया लाल,

मौसम हुआ गुलजार,

धरती ने ली अंगड़ाई,

लो बसंत ऋतु आई।

 

रंग-रंगीले फूलों से,

उपवन महके,

केसरिया टेसू के,

फूलों से वन दहके,

ताम्र रंग के नव-पल्लवों से,

वृक्षों ने किया सिंगार,

धरती ने ली अंगड़ाई,

लो बसंत ऋतु आई।

 

आई बसंत, बसंत-बहार,

मौसम हुआ गुलजार,

मादक चले बयार,

झूम-झूमकर,

नर-नारी नाचे,

उड़त अबीर गुलाल,

धरती ने ली अंगड़ाई,

लो बसंत ऋतु आई।

 

बागों में कोयल कूहके,

चिड़िया चहके,

बुलबुल चहके,

आमों में लगे बूर महके,

महक उठी अमराई,

लो बसंत ऋतु आई,

धरती ने ली अंगड़ाई,

लो बसंत ऋतु आई।

 

माथे बिंदिया लगा,

चूड़ी पहन,

नैनन में कजरा लगा,

मांग में भर सिंदूर,

पायल पहन,बिछिया पहन,

पैरों में महावर रचा,

तू भी कर सिंगार,

साजन आए द्वार,

लो बसंत ऋतु आई,

धरती ने ली अंगड़ाई,

लो बसंत ऋतु आई।

 

©लक्ष्मी कल्याण डमाना, नई दिल्ली       

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