लेखक की कलम से

देश और दुनिया में पहली बार सुर्खियों में बच्चे, कोरोना के कहर से बच्चे हुए अनाथ और अकेले, मदद के वादे होंगें क्या पूरे …

देश और दुनिया में कोरोना के कारण पहली बार बच्चे खबरों की सुर्खियों में हैं। प्रशासकों और वैज्ञानिकों के ध्यान में आ गए हैं। नहीं तो कितने मौके आए जब बच्चों की दिक्कतों  पर बात की जा सकती थी, की जानी चाहिए थी, लेकिन नहीं की गई। मसलन चुनाव के समय भी अनेक समस्याओं से ग्रस्त बच्चे कभी चर्चा के केंद्र में नहीं आए। लेकिन इन दिनों बच्चे चर्चा के केंद्र में हैं, क्योंकि पिछले साल से ही दुनिया भर में कोरोना के कारण उत्पन्न स्थितियों में बच्चे अनेक तरह की मुश्किलों से घिरते जा रहे हैं।

इन दिनों बच्चे स्कूल नहीं जा रहे। वे घरों में ही सिमटे हुए हैं। उनकी शिक्षा पर बुरा असर पड़ रहा है। कोरो ना की पहली लहर में ही करोड़ों बच्चे गरीबी के दलदल में धकेले जा चुके हैं और जैसे ही दूसरी लहर आईं तो बच्चे अनाथ भी होने लगे।

कोराना की पहली और दूसरी लहर में लाखों बच्चे बेसहारा हो गए हैं। शिक्षा से वंचित हो गए हैं। अपने देश की केंद्र और राज्य सरकारों ने बच्चों के हित में अनेक घोषणाएं की हैं। ये घोषणाएं अख़बारों में बड़े बड़े विज्ञापनों के जरिए प्रचारित भी की गई हैं। लेकिन यह अभी स्पष्ट नहीं है कि विभिन्न सरकारें अनाथ, असहाय और गरीब व मजदूर बन गए बच्चों की मदद के लिए घोषित घोषणाओं के कैसे अमल में लाएगी। अगर इन योजनाओं को अमल में लाने में देरी हुई तो बच्चे मानव तस्करी के शिकार बन सकते हैं, देह व्यापार में धकेले जा सकते और बाल मजदूर भी बन सकते हैं। इस तरह मानवों की अगली पीढ़ी का भविष्य खतरे में हैं।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यूनिसेफ और बाल अधिकार संगठन सेव दी चिल्ड्रेन के विश्लेषण के मुताबिक कोरो ना महामारी के कारण दुनिया भर में 15 करोड़ बच्चे गरीबी में धकेल दिए गए। अब वैसे बच्चे, जिनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, घर, पोषण, साफ सफाई और जल तक पहुंच नहीं है, उनकी संख्या एक अरब से भी ज्यादा हो गई है। इसी के साथ कोरो ना के कारण पिछले साल में करोड़ों बच्चे बाल मजदूर हो गए। ऐसी वृद्धि बीस साल में पहली बार देखने को मिल रही है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और यूनिसेफ के मुताबिक अगर सरकारों की ओर से  कुछ कारगर कदम नहीं उठाए जाएंगे तो अगले साल 2022 में बाल मजदूरों की संख्या बीस करोड़ से ज्यादा हो जाएगी।

एक और हैरानी वाले आंकड़े हैं कि स्कूल बंद होने के विकल्प के रूप में ऑनलाइन पढ़ाई का दौर शुरू हो जाने से करोड़ों बच्चे पढ़ाई से वंचित हो गए हैं। यूनिसेफ और अंतरराष्ट्रीय दूर संचार संघ के एक रिपोर्ट के मुताबिक इस नई परिस्थिति में तीन से सत्रह वर्ष तक की उम्र के   स्कूल जाने वाले तीस करोड़ बच्चों के पास उनके घरों में इंटरनेट कनेक्शन नहीं हैं। 15 से 24 साल के युवाओं में 75 करोड़ 90 लाख युवाओं को इंटरनेट उपलब्ध नहीं है। अमीर घरों के 58 फीसद बच्चों को इंटरनेट उपलब्ध है लेकिन गरीब घरों के 16 फीसद बच्चों के पास उपलब्ध है। जो बच्चे इंटरनेट से दूर हैं, वे भविष्य की स्पर्धा में पिछड़ जाएंगे।

यह सुकून की बात है कि अपने देश में कोरो ना के कारण अनाथ हुए बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने की चिंता सर्वोच्च स्तर पर की जा रही है। न केवल प्रधानमंत्री ने इसके लिए योजनाओं की घोषणा की बल्कि सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में इसकी मोडैलिटी तय करने का काम हो रहा है।  जो बच्चे अनाथ हो गए उनकी जिंदगी पहले जैसी तो एकदम नहीं होगी। नैशनल कमिषण फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स ने सुप्रीम कोर्ट में अनाथ बच्चों के बारे में जानकारी दी है, वह काफी गंभीर है। कमीशन के मुताबिक मार्च, 2020 से 29 मई, 2021 तक देश में कोरो ना से कुल 9346 बच्चे प्रभावित हुए हैं, जिनमें 1742 बच्चे अपनी मां और पिता दोनों को खो बैठे हैं और 7464 बच्चे ऐसे हैं जिन्होंने माता  या पिता दोनों में से किसी एक को खो दिया।

केंद्र सरकार ने घोषणा कि है कि अनाथ बच्चों पी एम केयर्स फॉर चिल्ड्रेन योजना के तहत उनकी पढ़ाई का खर्च उठाया जाएगा। साथ  ही 23 वर्ष की उम्र तक 10 लाख रुपए का फंड मिलेगा। आयुष्मान भारत का कवर दिया जाएगा। इसी तरह उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश, हरियाणा, त्रिपुरा, असम, कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों ने भी अनाथ बच्चों की मदद के लिए अनेक योजनाओं की घोषणाएं की हैं। केवल योजना की घोषणा ही काफी नहीं है। उसे अमल में भी लाया जाना चाहिए। समय रहते ऐसे अनाथ बच्चों तक मदद पहुंचाई जाए नहीं तो उनका भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।

 

©हेमलता म्हस्के, पुणे, महाराष्ट्र                                   

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