चंचल सरिता …
जीवन की चंचल सरिता में,
मैं गीत कर्म का गाती हूं !
है गतिशील क्रमिक जीवन ,
इसमें कर्म की धुन सजाती हैं!
बाधाओं से अनगढ़ पथ पर ,
हर क्षण भाव बहती हूं !
कभी पहाड़ो की चोटी पर,
कभी पाताल सैर करती हूं!
जीवन की चंचल सरिता में,
मैं गीत कर्म का गाती हूं !
है बहुरंगी क्षणिक जीवन ,
इसमें सत्य का रंग चढ़ाती हूं!
मृगतृष्णा सा जीवन क्रम है,
हर क्षण स्वतः को चेताती हूं!
प्रलोभन के चक्रों में नित्य,
भाव संवरण कर पाती हूं!
जीवन की चंचल सरिता में,
मैं गीत कर्म का गाती हूँ!
जीवन एक खेल है प्यारे,
इसे समझना ना चलचित्र!
केवल कोरी कल्पना से,
कहां पा सका मनु कभी!
हर दिन हृद में जोश भर,
मैं कर्म प्रवीण बन जाती हूं!
जीवन की चंचल सरिता में,
मैं गीत कर्म का गाती हूं!
जीवन भावों का महा समंदर,
इसमें नेक भाव अपनाती हैं !
ईष्या-द्वेष,जलन की बेड़ियों में,
मैं स्वयं को कभी न पाती हूं !
सर्व कल्याण का भाव लिए ,
मैं सबको गले से लगाती हूँ!
जीवन के चंचल सरिता में,
मैं गीत कर्म का गाती है!
©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता