आपाधापी …
आपाधापी वाले जीवन में
मचा हुआ है हलचल खास।
एक एक कर सरक रहा है
जैसे रेत मुट्ठी से आप।।
कैसे कैसे क्या क्या जोड़ें
चारो तरफ फैला बाजार।
एक सम्हाले दूजा बिखरे
समेटने का कैसे करें जुगाड़।।
एक खुशी तो एक नाराज हो
लगाते फिर पक्षपात आरोप।
इस उलझन में उलझ उलझ कर
झेलें कैसे ये आरोप।।
ये कैसी आपाधापी जीवन में
जिससे मानव है परेशान।
कभी मिटाने पेट भूख या
फिर जोड़ने घर का समान।।
चैन कहाँ मानव जीवन में
करने को है बहुत ही काम।
कभी बच्चों की खुशी के खातिर
या घर परिवार और समाज के नाम।।
आपाधापी अब मची खुशहाली
जो बना है मृगमरीचिका समान।
कभी ढूंढें आसपड़ोस में
या ढूंढे फिर सकल जहाँ।।
ये आपाधापी तो क्षणभंगुरी
जिसके पीछे सकल जहाँ।
आपाधापी हो प्रभु शरण की
फिर मिल जाए आत्मज्ञान।।
उस आत्म ज्ञान के छाया में
मिल जाएगा अमिट संतोष।
आपाधापी की न तब और जरूरत
इस आपाधापी से मिल जाएगा संतोष।।
©कमलेश झा, फरीदाबाद