लेखक की कलम से

सीमाओं में कैद संसार …

“कोरोना वायरस” एक संक्रमण से फैलने वाली महामारी है जो विषाणु से फैलती है ये अकोशिकीय अतिसूक्ष्म जीव होते हैं जो केवल जीवित कोशिकाओं में ही वंशवृद्धि कर सकते हैं। इनका निर्माण नाभिकीय अम्ल और प्रोटीन से मिलकर होता है। शरीर के बाहर तो ये मृत समान होते हैं परन्तु अंदर जाते ही जीवित होकर वंशवृद्धि करने लगते हैं। जिनकी आयु इनके अनुकूल वातावरण मिलने पर सैकड़ों वर्ष हो सकती है। चूँकि ईश्वर ने प्रकृति को स्वचालित व्यवस्थाओं से परिपूर्ण किया है इसलिए प्रकृति ने अंत और जन्म की सभी सीमाएं तय की हैं और हमने ईश्वर की सीमाओं को समुदायों में कैद कर दिया है।

यह सत्य है कि कोरोना एक ऐसी महामारी है जो जीव से जीव में फैलती है। जीव के संक्रमित अंग इन विषाणुओं को परिवहन और भीड़ में छोड़कर उसे इतना फैला देते हैं कि फिर उसे रोक पाना संभव नहीं दिखता और मानवीय लाशें बहुत पीड़ा देती हैं। चूंकि प्रकृति ने परिवर्तन कारकों को सदैव सक्रिय रखा है इसलिए जहां जितना अधिक मातम् होगा वहां उतनी ही जीवित बचने वाली जनसंख्या प्रतिरोधक क्षमता से परिपूर्ण ऊर्जावान होगी। जिसमें जमीन से पानी निकालने की क्षमता और आविष्कारों के लिए खोजी मन होगा। वर्तमान में भले ही वह नौजवान अपने बुजुर्ग माता-पिता को खो चुके हों लेकिन अपनी आगामी पीढ़ी को नये युग के निर्माण का विज्ञान देकर विदा होंगे।

जिस प्रकार आज इस वैश्विक महामारी के चलते विश्व लॉकडाउन की स्थिति में है तो वहीं आज पूरा परिवार इस बहाने एक साथ समय व्यतीत कर रहा है। अब किसी को यह शिकायत भी नहीं कि हमारे लिए उनके पास समय नहीं। सभी कारोबार बंद हैं तो इस अवधि में एक नये रोजगार की उत्पत्ति भी पूरी ईमानदारी के साथ विकसित हो रही है जो भविष्य में नयी पौध के साथ लहलहायेगी। जहां एक पीढ़ी हमसे विदा लेगी वहाँ भविष्य एक नयी पीढ़ी की आधारशिला रखकर युवा जगत को जन्म देने का कारण भी होगा।

कोरोना वायरस का हमें धन्यवाद भी अदा करना चाहिए कि इसके आने से हमारे वर्षों पुराने झगड़े सुलझ गये और जहां प्यार के लिए तड़प रही यौवनावस्था अब कोरोना की दहशत में नहीं अपितु पति को कातर नजरों से देखते नहीं अघा रही। यह पीड़ा चंद घड़ी की मेहमान है जो आँधी की तरह आकर चली जायेगी जिसके पीछे चंद पीड़ा के आलेख होंगे लेकिन सदियों के शिलालेख लिखने वाला यही कोरोना एक नये भविष्य का निर्माण करेगा जिसका आभार व्यक्त करना चाहिए। क्योंकि इसने तमाम तोप,बम्ब,मिशाइल और परमाणु के साथ सभी सीमाओं को एक ही झटके में निबटा दिया और खुद अनदेखा,अनजाना अजेय विजेता बनकर आहटमात्र से डराने में सफल रहा है। ऐसे ज्ञानी विषाणु की उपस्थिति हमें स्वीकार कर अपनी सोचों के साये से नफरत की दीवार का पर्दा हटा देना चाहिए। तभी यह विषाणु शांत होगा और धर्मपत्नी भी। जब धर्मपत्नी शांत होगी तब विषाणु की उपस्थिति संभव नहीं क्योंकि तब व्यक्ति संसार में नहीं संसार अपनी सीमाओं में कैद होगा।

©रीमा मिश्रा, आसनसोल (पश्चिम बंगाल)

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