लेखक की कलम से

कारोबार …

आपकी नींद पर
मेरा पहरा
हो गया

जागने पर प्यार
और भी गहरा
हो गया
अब बताईए क्या
होगा क्या
करूं

नगद ले लूं खुशियां
या ले लूं
उधार

मुझे तो दिख रहा
प्रेम का इक
बाजार

अब बताईए क्या
होगा क्या
करूं

क्यों लगाया स्नेह
का ये अद्भुत
कारोबार

काहे बसाया
प्रेम का ये
संसार

अब बताईए क्या
होगा क्या
करूं

इस नेह के व्यापार
में होती है केवल
सिर्फ हार

महंगा पड़ेगा
यह नेह का
व्यापार

 

©क्षमा द्विवेदी, प्रयागराज                

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