लेखक की कलम से

टूटी हुई कस्ती …

 

टूटी हुई कस्ती में, पतवार है किनारा,

न जाने ओ मंजिल, दूर तलक पड़े है ||

 

चले डगर सैकड़ो, मिल भी तो चले है,

कैसी है ये विपदा, पल भी आन पड़े है ||

 

निवाला न पास है, कुम्हलाए मन लिए,

सितमढ़हाए तुम, न हम आज उदास है ||

 

इम्तिहान ऐसे लिए, दहलीज को न पार,

दुबके हुए मन में, लड़ने की परवान चढ़े ||

 

ओ मेरे परवरदिगार, नजरे न तू फेर आज,

रहम कर मुसाफिर पे, भीम की इबादत है ||

©योगेश ध्रुव ‘भीम’, धमतरी

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