लेखक की कलम से

वोह यार पुराने ले आयो..

ये चाय रखी है टेबल पर

इतवार पुराने ले आयो

तुम यार पुराने ले आयो

दिखती लोगों की भीड़ बड़ी

तुम मेरे अपने ले आयो

मारूफ बड़े है सब यहां

तुम वक्त हमारा ले आयो

रंगीन बड़ी है दुनियां पर

रस भरी टॉफी के आयो

खाने तो फास्ट फूड पर

साथ तुम्हारा ले आयो

रास्ते मोड़ वही है पर

वोह हाथ तुम्हारा के आयो

चाय वहीं कॉफी वहीं पर

शर्त पुरानी ले आयो

आवाज़ बड़ी चुनौती बड़ी पर

सुकून वहीं फिर ले आयो

बातों में बाते बहुत पर

वोह यार हमारे के आयो

वोह यार पुराने ले आयो

वोह वक्त पुराना ले आयो

वोह यार पुराने ले आयो..

 

©हर्षिता दावर, नई दिल्ली                                               

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