लेखक की कलम से

फफोले …

 

अक्सर इनकी अंगुलियाँ

कट जाती हैं सुबह की हड़बड़ी में

सब्जियाँ काटते समय।

गर्म तवे से कलाईयों पर

पड़ जाते हैं जलने के दाग

तलते समय तेल के छींटे उछल

चेहरे, हाथों पर

दे जाते हैं फफोले।

कभी नमक, कभी नींबू कभी मिर्च

लगने से जब जलन होती है इनमें

ठंडे पानी के नीचे रख

राहत की साँस ले लेती हैं।

परवाह नहीँ करती ये पीड़ा की

न ही मरहम लगाती हैं

स्वीकार कर लेती हैं

इनसे मिले दर्द, निशान को

स्त्री का भाग्य समझ।

बिल्कुल ऐसे ही तो

स्वीकार लेती हैं

अपने हृदय में पड़े

फफोलों को, घावों को

अपना नसीब समझ

जो इन्हें अपनों के ही

तानों के खंजरों से

उपेक्षा के दंशों से

मिले होते हैं…….

 

©सविता व्यास, इंदौर, एमपी              

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