लेखक की कलम से

भेड़ाघाट जहां गुप्त वेनगंगा, सरस्वती और नर्मदा का संगम माना जाता है …

नर्मदा परिक्रमा भाग -29

अक्षय नामदेव। हीरापुर में रात्रि विश्राम के बाद हम सुबह जल्दी उठ गए और दैनिक क्रिया इत्यादि से निवृत हो हमने कुन्नूलाल भैया से जाने की अनुमति मांगी तथा आगे निकटतम घाट की जानकारी लेते हुए कहा कि हम वही स्नान करेंगे। उन्होंने सरौवाघाट मनखेड़ी की जानकारी दी जो उत्तम घाट है। भाभी ने निकलने के पूर्व हमें चाय पिलाई। नाती को आशीर्वाद स्वरुप कुछ द्रव्य देकर हम सुबह 7:00 बजे आगे परिक्रमा के लिए रवाना हो गए।

तारीख 31 मार्च 2021 दिन मंगलवार को सुबह 9:00 बजे लगभग हम सरौवाघाट मनखेड़ी पहुंच गए। यहां हमने नर्मदा नदी में स्नान किया तथा तट पर स्थित सिद्ध हनुमान एवं शिव के मंदिर में पूजा अर्चना की। सरौवाघाट मनखेडी जबलपुर जिले में है तथा यहां नर्मदा गहराई में बहते हुए शांत स्वरूप में है। कुछ देर तटवास करने के बाद हम आगे परिक्रमा मैं निकल पड़े तथा जबलपुर भेड़ाघाट स्थित त्रिवेणी संगम पहुंचे जहां बेनगंगा गुप्त सरस्वती एवं नर्मदा नदी का संगम हुआ है।

त्रिवेणी संगम में पूजा अर्चना करके हमने माता को चुनरी चढ़ाई तथा यहां बैठकर नर्मदा अष्टक का पाठ किया। साथ रखें पात्र में से नर्मदा जल त्रिवेणी में प्रवाहित किया तथा वहां से कुछ जल पात्र में भरा। यहां त्रिवेणी संगम में नर्मदा स्नान करने वालों की बड़ी तादाद थी। अनेक परिक्रमा वासी यहां पूजा पाठ कर रहे थे वहीं दूसरी ओर आसपास के स्थानीय नागरिक त्रिवेणी संगम में कपड़े इत्यादि भी धो रहे थे। त्रिवेणी संगम तट पर अनेक शिवलिंग विराजित है कुछ मंदिर भी है। पूजा प्रसाद की दुकानें भी यहां सजी हुई हैं। त्रिवेणी संगम पर समय बिताने के बाद अब हम लम्हेटा घाट की ओर रवाना हुए।

आज हमारा जबलपुर के सभी प्रमुख नर्मदा घाटों का तट दर्शन एवं पूजन का कार्यक्रम था। विद्यार्थी जीवन से अब तक मेरा जबलपुर आना जाना लगा ही रहा है। मेरे बड़े भैया संजय की ससुराल जबलपुर में ही हैं इसके अलावा बुआ की भी ससुराल यही है। भाई प्रमोद नागर का भी परिवार यही रहता है जो मेरा बचपन का मित्र है। इसके अलावा अन्य सगे संबंधी भी यहां है इस कारण इन लोगों के यहां अलग-अलग कारणों से लगातार जबलपुर आना जाना हुआ है। इस दौरान ग्वारीघाट एवं भेड़ाघाट धुआंधार इत्यादि स्थानों का आवश्यक रूप से दर्शन एवं भ्रमण हुआ है इस लिहाज से जबलपुर मेरे लिए कोई नया स्थान नहीं था परंतु आज जब हम नर्मदा परिक्रमा में है तो फिर से उन्हीं स्थानों का दर्शन पूजन करने का सौभाग्य मिला है। मन में कुछ अलग तरह का उत्साह है। उत्साह क्यों ना हो? मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर में जो है।

जबलपुर का प्राचीन नाम जाबालिपटटन है। यहां नर्मदा तट पर जबालि ऋषि ने तपस्या की थी कालांतर में उन्हीं के नाम से इस स्थान का नाम जबालिपटटन और बाद में जबलपुर हो गया। नर्मदा तट मैं बसे जबलपुर में अनेक प्राचीन संस्कृतियों का उद्भव एवं विकास हुआ। यहां अनेक स्थानों पर नर्मदा के घाट बने हुए हैं जिनका निर्माण तत्कालीन शासकों ने कराया है। जबलपुर नर्मदा तट का ऐसा शहर है जहां घूमने फिरने एवं नर्मदा तट के दर्शन के लिए 5 दिन का भी समय कम ही है। परिक्रमा करते समय तट की मर्यादा का पालन करना पड़ता है परंतु बाकी समय आप जबलपुर के सभी घाटों में नौका विहार के साथउत्तर एवं दक्षिण तटो में स्थित मंदिरों का दर्शन पूजन कर सकते हैं। जबलपुर के तट एवं घाट जबलपुर को न सिर्फ खूबसूरत बनाते हैं बल्कि इन्हीं सब कारणों से तीर्थ एवं पर्यटन के मानचित्र में जबलपुर प्रसिद्ध भी है।

अब हम लम्हेटा घाट पहुंच चुके थे। घाट पर पहुंचकर हमने जलसिंचन कर नर्मदा को प्रणाम किया। तट की पूजा अर्चना कर चुनरी चढ़ाई। प्राकृतिक सुषमा से परिपूर्ण लम्हेटा घाट शहर से बिल्कुल लगा होने के बावजूद यहां अद्भुत शांति है। प्राचीन काल ऋषि मुनियों की तपोस्थली रही लम्हेटा घाट में महर्षि पिप्पलाद ने तपस्या की थी तथा यहां पिपलेश्वर शिव मंदिर की स्थापना की थी। लम्हेटा घाट में अनेक मंदिरों के समूह है जिसमें प्रमुख सूर्य मंदिर है। यहां तट वास करना पुण्य दाई है। लम्हेटा घाट का दर्शन करने उपरांत हम भेड़ाघाट का दर्शन करने रवाना हो गए।

 

 हर हर नर्मदे।

 क्रमशः

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