धर्म

भेड़ाघाट अब पर्यटन का बड़ा रूप ले चुका है आइए संगमरमर के बीच नौकायन का लुप्त उठाए …

नर्मदा परिक्रमा भाग -30

 

अक्षय नामदेव। लम्हेटा घाट से अब हम भेड़ाघाट जलप्रपात का दर्शन करने जा रहे थे। हम जबलपुर की भीड़ भाड़ वाली सड़क पर से गुजर रहे थे। दोपहर के लगभग 1:30 बज चुके थे तथा सूरज का प्रचंड ताप हमें व्याकुल कर रहा था इसके बावजूद हम विश्राम करने के मूड में नहीं थे।

जबलपुर शहर के भीड़-भाड़ वाले इलाके को देखकर हमारे वरिष्ठ साथी परिक्रमा वासी राम निवास तिवारी जबलपुर शहर से जुड़ी अपने अतीत को हमें बताने लगे। तिवारी ने कहा -अक्षय बाबू जबलपुर से मेरा पुराना जुड़ाव है। यह शहर मुझे अपना सा लगता है। वर्ष 1967 में पेंड्रा से हायर सेकेंडरी उत्तीर्ण करने के बाद मैं वर्ष 1968 में कॉलेज की पढ़ाई करने के लिए जबलपुर आ गया। यहां जगदलपुर वाले राजेंद्र तिवारी जिन्हें मैं मुन्ना भैया कहता हूं वे यहीं रहकर पढ़ाई कर रहे थे।

उनके पिता बीपी तिवारी जबलपुर में उद्योग विभाग में ज्वाइन डायरेक्टर थे तथा नेपियर टाउन में उनका बंगला था। उसी बंगले में मैं मुन्ना भैया के साथ रहने लगा। मुन्ना भैया उम्र में मुझसे बड़े होने के बावजूद मित्रवत थे इसलिए यहां जबलपुर में रहने में मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई।

जबलपुर में उन दिनों शरद यादव छात्र राजनीति में सक्रिय थे। मैं और मुन्ना भैया छात्र राजनीति में रुचि रखने के कारण शरद यादव के निकट हो गए और उन्हीं के साथ हम छात्र राजनीति में काम करने लगे। वर्ष 1972 में मेरा ग्रेजुएशन पूरा हो गया। मुन्ना भैया की भी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी पर हमें जबलपुर खूब रास आ रहा था। मेरी आर्थिक स्थिति का ध्यान रखते हुए मुन्ना भैया के पिताजी ने मुझे हितकारिणी इंटर कॉलेज में शिक्षक के पद पर नौकरी दिला दी परंतु मुझे शिक्षकीय कार्य रास नहीं आया और मैंने नौकरी छोड़ दी। इसी बीच मुन्ना भैया के पिताजी का स्थानांतरण भोपाल हो गया और हमें नेपियर टाउन वाला बंगला छोड़ना पड़ा।

अब मैं और मुन्ना भैया गढ़ा में किराए का कमरा लेकर रहने लगे और हमने कपड़े की प्रिंटिंग का कार्य जबलपुर में शुरू किया परंतु शरद यादव के साथ हमारी छात्र राजनीति में सक्रियता बनी रही। हम अपने काम से खाली होते तो सीधे शरद यादव के घर पहुंच जाते और उनके राजनीतिक क्रियाकलाप में सहयोगी रहते बाकी बचा खाली समय हम नर्मदा तट के इन घाटों पर ही गुजारते थे। तिवारी बताने लगे कि वर्ष 1976 में जब इमरजेंसी लगी तब शरद यादव की गिरफ्तारी हुई और उन्हें जेल में डाल दिया गया तथा उनके साथियों की खोजबीन एवं धरपकड़ शुरू हुई।

हम वहां से ट्रेन पकड़ कर खोंगसरा आ गए। हम गिरफ्तारी से तो बच गए परंतु इस चक्कर में हमारा कपड़े के प्रिंटिंग का कारोबार चौपट हो गया। तिवारी ने बताया कि वे गढ़ा में रहते हुए मदन महल के पास स्थित शारदा मंदिर में दर्शन के लिए रोज जाया करते थे। इमरजेंसी के बाद वे 1980 तक वहां रहे तथा बाद में पेंड्रा आ गए। इस तरह जबलपुर में नर्मदा परिक्रमा के दौरान तिवारी ने अपनी पुरानी यादों को साझा किया। उनकी इन बातों के बीच हम भेड़ाघाट पहुंच गए।

नर्मदा तट का घाट होने के कारण भेड़ाघाट का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व है परंतु इन सबके अलावा वर्तमान परिवेश में भेड़ाघाट पर्यटन स्थल के रूप में ज्यादा प्रचलित हो गया है। भेड़ाघाट में परिक्रमा वासी कम ही दिखाई देंगे ज्यादातर यहां देश विदेश के सैलानी ही दिखाई देंगे जो यहां नौका विहार एवं संगमरमरी चट्टानों के बीच से बहती नर्मदा के सौंदर्य का लुफ्त उठाने आते हैं जो जबलपुर के लिए बड़ा आय का स्रोत है। नर्मदा यहां नदी कम झील जैसी ज्यादा दिखाई देती है। यहां की संगमरमरी खूबसूरती के कारण ही भारत के अनेक सिनेमाकारों ने यहां फिल्मों की शूटिंग की है जिनमें जिस देश में गंगा बहती है, आवारा, प्राण जाए पर वचन न जाए, गंगा की सौगंध, अशोका तथा मोहनजोदड़ो उल्लेखनीय फिल्में है।

मैं स्वयं पहले कई बार भेड़ाघाट में नौका विहार का आनंद ले चुका हूं परंतु इस बार मां नर्मदा के तट पर परिक्रमा वासी बन कर आया हूं। हम भेड़ाघाट तट पर बैठ गए और नर्मदा का पूजन अर्चन किया। भरी दुपहरी में ठंडे पानी के पास बैठना अच्छा लग रहा था। होली के 3 दिन बाद भी कुछ युवक युवतियां होली खेल कर आए थे तथा वहां जल क्रीड़ा कर रहे थे। सभी तैरने में माहिर थे। हम उनकी होलीयाना कूद फांद देखते रहे। इनके कूद फांद से जो ठंडा जल हम पर पढ़ रहा था उससे हमें राहत ही मिल रही थी। काफी देर तक बैठे रहने के बाद अब हम मां नर्मदा को प्रणाम कर तट के ऊपर आ गए। भेड़ाघाट में तट के ऊपर और बाहर संगमरमरी मूर्तियों एवं सजावट के सामानों की दुकानें सजी हुई है। इन दुकानों का अवलोकन करते हुए हम बाहर लगी गन्ने के रस की दुकान में गन्ने के रस का आनंद लिया तथा वहां से ग्वारीघाट के लिए रवाना हो गए।

हर हर नर्मदे।                                                                                   क्रमश:

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