लेखक की कलम से

अंग प्रदेश की अंगिका की उपेक्षा अब सहन नहीं : अंगिका के लिए उदासीन हैं नेता, साहित्यकार कर रहे हैं अविराम संघर्ष – डॉ अमरेन्द्र

प्रसून लतांत । हमारे प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने लिखा है कि जहां बिहार यज्ञ वलक्य और गौतम की भूमि है, वहां यह महावीर और बुद्ध, चन्द्रगुप्त और चाणक्य और अशोक और गुप्त राजाओं की भूमि रही है। आधुनिक बिहार के मुख्य मुख्य भागों के प्राचीन नाम विदेह, मगध और अंग सदियों से धर्म, दर्शन, कला आदि जो सब संस्कृति और सभ्यता के द्योतक है, वे न केवल भारत के सभी भागों में, अपितु एशिया के सुदूर भाग में भी रश्मि बिखेरते रहे हैं। यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि भारत का इतिहास वस्तुत बिहार का ही इतिहास था। डॉ राजेंद्र प्रसाद के शब्दों में जिस अंग का उल्लेख हुआ है, उसका अतीत कितना महिमा मय और गरिमामय रहा है, वह पूरी तरह स्पष्ट है।

प्राचीन काल में आज के बिहार की भौगोलिक सीमा के अन्तर्गत तीन प्रसिद्ध राज्य या महा जनपद थे,यथा मगध, अंग, विदेह या मिथिला। अंग का अतीत अत्यंत गौरवमय रहा है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति की प्रातः वेला में यह व्रत्य्य धर्म और वैदिक धर्म की धात्री भूमि बना। अंगिरस, पैप्पिलाद और श्रृंगी जैसे मंत्र द्र श्टा ऋषियों ने अपनी अनमोल वाणी से प्लावित किया। इस भूमि को 12वें जैन तीर्थंकर वासु पूज्य और जैन महावीर की पहली शिष्या चंदन वाला की जन्मभूमि का गौरव प्राप्त है।

भगवान बुद्ध के मोद गल्य जैसे शिस्य और विशाखा जैसी यहीं की धूल में लोट लोट कर बड़े हुए थे। इसी के साथ आठवीं शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी तक साधना के साहित्य रचने वाले सुप्रसिद्ध चौरासी सिद्धों में आधे से अधिक भागलपुर के कहलगांव स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय से संबद्ध थे। इनमे कुछ की जन्मभूमि भी अंग रही है। जैसे सरहपा सहित कई कवि थे। अंग प्रदेश में सम्राट अशोक के साथ फिल्म अभिनेता अशोक कुमार और बांग्ला के प्रसिद्ध साहित्यकार शरत चन्द्र आधुनिक काल में भी अंग क्षेत्र में अंगिका भाषा में निरन्तर साहित्य लेखन किया जा रहा है।

अंगिका साहित्य के अमृत पुरुष डॉ अमरेन्द्र कहते हैं कि अंगिका के साहित्यकार सरहपा को आदि कवि मानते है। वे कहते हैं कि 500 से अधिक रचनाकार अंगिका भाषा में विविध विधाओं में साहित्य की रचना कर रहे हैं। अंगिका बिहार के पूर्वी हिस्से के 22 जिलों के 4 करोड़ लोगों की भाषा है। इस भाषा में बोलने वाले लोग बिहार और झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल और असम में भी हैं।

डॉ अमरेन्द्र ने अंगिका भाषा में लिखे जा रहे साहित्य की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि इस भाषा में कविता के क्षेत्र में महा काव्य और प्रबंध काव्य के अलावा गीत, ग़ज़ल नवगीत, कहानी, उपन्यास, व्यंग्य, लघुकथा, नाटक आदि विधाओं में बहुत कुछ लिखा जा रहा है। बच्चों के लिए बहुत ज्ञान वर्धक कविताएं भी रची का रही हैं। फिल्में भी बन रही हैं। समय समय पर इस भाषा में पत्र पत्रिकाएं भी निकलती रहती हैं। अंगिका के साहित्यकार अंगिका में बहुत कुछ रचना और करना चाहते हैं लेकिन संसाधनों के अभाव में उनकी मुरादें पूरी नहीं होती है।

अंगिका के कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, गीतकार, गजलगो, नाटककार और आलोचक डॉ अमरेन्द्र का कहना है कि अंगिका के विकास में राजनेताओं की कोई भूमिका नहीं है, जो कुछ भी हुआ हुआ है वह इस भाषा के लेखकों और कवियों ने किया है। वे बताते हैं कि अंगिका के विकास के लिए अंग प्रदेश की विभूतियों ने बहुत प्रयास किया है। उनकी कोशिशों के कारण अंगिका में आज सैकड़ों लेखक लिख रहे हैं। अब तो अंगिका में रचना करने वाली महिलाओं की संख्या में इजाफा हो रहा है। पिछले एक दशक में अनेक महिला रचनाकारों ने महत्वपूर्ण कृतियों की रचना की है।

पिछले साल जब लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भागलपुर आए तो उन्होंने अपने भाषण की शुरूआत अंगिका में नारे लगाने से की। इससे भी इस भाषा के प्रति आम लोगों में गौरव बढ़ा है लेकिन उनकी सरकार ने इस भाषा के विकास के लिए कभी कुछ नहीं किया। बिहार सरकार ने कुछ साल पहले बिहार अंगिका अकादमी का गठन किया लेकिन अभी तक अंगिका के विकास में कोई योगदान नहीं है। अंगिका अकादमी निष्क्रिय हो गई है। पहले अध्यक्ष के कार्यकाल बीत जाने के बाद उनकी जगह किसी नए अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं की गई है।

अंगिका में साहित्य की विविध विधाओं में अब तक सैकड़ों किताबें छप चुकी हैं। तिलका मांझी भागलपुर विश्व विद्यालय में एम् ए में अंगिका की पढ़ाई हो रही है। अब प्राथमिक विद्यालयों में मातृ भाषा में पढ़ाई शुरू करने कि कवायद की का रही है। आकाश वाणी में भी अंगिका में विभिन्न कार्यक्रम होते हैं। अंग एक्सप्रेस नाम से एक ट्रेन भी चलती है। झारखंड ने इसे राज्य की दूसरी राज भाषा का दर्जा दिया है लेकिन बिहार राज्य में जहां इस भाषा में बोलने वाले लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है, वहां की सरकार ने इसे दूसरी भाषा का दर्जा तक नहीं दिया है। अब अंग प्रदेश में बिहार सरकार से अंगिका को दूसरी राज भाषा का दर्जा देने और केंद्र सरकार से इस अष्टम सूची में शामिल करने की मांग की जा रही है। इसके लिए समय समय पर कई आंदोलन हुए। कोरो ना का प्रकोप नहीं फैला होता तो उपरोक्त मांगों को लेकर जन आंदोलन शुरू हो गया होता।

डॉ अमरेन्द्र बताते हैं कि मौजूदा समय में अंगिका भाषा के विकास और सम्मान के लिए कैलाश ठाकुर,सुधीर प्रोग्रामर,गौतम सुमन,प्रसून लतांत, मनोज पांडे सहित अनेक लोग सक्रिय हैं। उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि अंग प्रदेश की आत्मा जाग गई है। अब अंगिका के विकास को कोई नहीं रोक सकता है। अंगिका के लिए एक अंतहीन आंदोलन का समय आ चुका है।

 

Back to top button