एम्बुलेंस की आवा जाही …
मेरे घर के पीछे से
एक सड़क जाती है।
ये सड़क
कुछ अस्पतालों की और जाती है।
सड़क है तो
वाहनों की आवा जाही लगी रहती है।
ध्यान तक नहीं जाता
जब आदत हो जाती है।
आजकल बदला बदला नजारा है।
बेहद दुख से भरा हुआ है।
एम्बुलेंस का आवा गमन
कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है।
एम्बुलेंस का सायरन
जब तब बज ही रहा है।
सोचती हूँ एम्बुलेंस में कौन होगा?
कल्पना में चित्र उभरने लगा है।
शायद कोई बुजुर्ग है।
आँखे बंद कर बुदबुदा रहा है।
अरे बेटा, मुझे घर पर ही रहने दो।
अस्पताल में तो मैं मर ही जाऊंगा।
बेटे बेटियों से ना मिल पाऊंगा।
पोते पोतियों को ना देख पाऊंगा।
ना जाने अंतिम संस्कार
नसीब होगा या नहीं।
चार कन्धों का सहारा
मिल पायेगा या नहीं।
हे ईश्वर कुछ तो रहम कर।
कम से कम मौत पर तो
सम्मान का सामान कर।
रुकिए ज़रा,
एक और एम्बुलेंस आ रही है।
सायरन की आवाज पास आ रही है।
कल्पनाओं में फिर से
एक चित्र उभर कर आ रहा है।
एक माँ को अस्पताल
ले जाया जा रहा है।
माँ आँखों में आँसू लिए
दर्द भरे शब्दों में बोले जा रही है।
हे भगवान, मेरे बच्चों का क्या होगा?
मुझे कुछ हो गया
तो उनकी देख रेख कौन करेगा?
इनके पिता को तो
नौकरी से फुर्सत ही नहीं।
बच्चों की जरूरतों का
कुछ पता ही नहीं।
रिस्तेदार कहां मदद कर पाते हैं।
सब अपने जीवन में व्यस्त रहते हैं।
हे ईश्वर मुझ पर रहम कर देना।
मुझ से मेरी जिंदगी छीन मत लेना।
एक एम्बुलेंस और आ रही है।
तेज सायरन बजाए जा रही है।
कल्पनाओं में एक और चित्र
उभर कर आ रहा है।
एक मासूम बच्चे को
अस्पताल ले जाया जा रहा है।
बच्चा मम्मी मम्मी पुकार रहा है।
डर के मारे रोये जा रहा है।
सुनते हैं ज़रा, कुछ बोल रहा है।
मम्मी आपने मना किया था,
तो मैं बाहर कहीं गया ही नहीं।
दोस्तों से एक अरसे से मिला ही नहीं।
फिर कैसे बीमार हो गया?
तुम्हीं बताओ,
मुझे तो कुछ पता ही नहीं।
इंजेक्शन से डर लगता है।
अस्पताल जाना अच्छा नहीं लगता है।
मेरा दोस्त राहुल गए महीने
अस्पताल गया था,
लौट कर वो आया ही नहीं।
क्या मुझे भी कुछ हो जाएगा?
क्या लौट कर घर नहीं आ पाऊंगा?
अम्बुलेंसों के आने जाने
का सिलसिला जारी है।
हर किसी का कष्ट बड़ा भारी है।
कैसी ये वैश्विक महामारी है।
©ओम सुयन, अहमदाबाद, गुजरात