लेखक की कलम से

देना भी सीखें …

 

सारे जमाने की दौलत,

सारे जमाने की चाहत ।

 

ऐश्वर्य, सफलता, शोहरत,

हमें मिल जाए।

 

पर हम भी तो सोचें,

हम किसके काम आए!

 

क्या समीर से सीखा,

सबको सुरभित करना,

सांसे देना।

 

क्या नदी से सीखा ,

सागर की ओर अविरल बहना।

 

 

क्या दिनकर से सीखा,

खुद जलकर सबको रोशनी देना।

 

क्या प्रकृति से सीखा पुनः पुनः बिखर,

फिर संवर, बस देते ही रहना।

 

जो देता है सृष्टि में बस,

उसी की उपयोगिता है।

 

सिर्फ लेना- लेना ही नहीं,

लेकर, देना भी सीखें।।

©अनुपमा अनुश्री, भोपाल, मध्य प्रदेश

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