लेखक की कलम से

सतर्क भारत समृद्ध भारत …

भारत देश पूरे विश्व में अपनी एकता, अखंडता, संस्कृति, रह्न- सहन, खान-पान, अलग-अलग भाषाओ, पहनावे इत्यादि के लिये विख्यात है। जो सही मायने में भारत की असली ताकत और पहचान है। विभिन्न संस्कृतियाँ विभिन्न तौर-तरीको से परिचय कराती है जिसमें रह्न- सहन, खान-पान, भाषा, पहनावा आदि शामिल है। जो कि एक बहुत बडा सुअवसर भी प्रदान करता है भारतवासियो को, न केवल आम ज़िंदगी में अलग-अलग वस्तुओ को अनुभव करने में अपितु सही माध्यम से व्यवसायो में प्रयोग हुई यही विभिन्न्ता आजीविका के साधन प्रदान करने में सक्षम साबित हो सकती है। हमें ज़रूरत है अपनी ताकत का मह्त्व समझकर उसका सही तरीके से उपयोग करने की। आज व्यवसाय के दस हज़ार से अधिक विकल्प मौजूद हैं ज़रूरत है तो केवल सतर्कता और समझदारी से लाभ उठाने की। एक तरफ जहाँ आज़ादी के बाद से चौह्त्तर सालो होने पर भी आज तक बेरोज़गारी की महामारी से हमने कभी खुद को मुक्त नही पाया वही दुसरी तरफ इतने विकल्पो की जागरुक्ता से वंशित रहना या इनका किसी भी प्रकार से लाभ न उठा पाना एक बहुत बडी समस्या है। आज़ादी के वक़्त नेहरू जी ने अपने भाषण में कहा था की “भविष्य में हमें आम आदमी, किसानों और कामगारों के लिये बडी जीत और उपलब्धियों के अवसर लाने है ताकि हर आंख से आंसु मिट सके।“भारत जो की एक बहुत बडा लोक्तांत्रिक देश है जहाँ राजनीति को जनता के हित में प्रमुख होना चाहिये वही भ्रष्टाचार भी एक अखंड सा रूप लिये दिखाई देता है। जिसके चलते हर एक जन को खुद सरकार द्वारा बनाई नितियो का पूर्ण लाभ नही मिल पाता। इसके लिये आवशयक है कि मौजूद विकल्पो और नितियो को जनता खुद सतर्क रहकर अपने हक़ में लाभ का आनंद ले। अकेला चना भाड नहीं फोड सकता इसके लिये हम सभी को मिल कर प्रयासरत होना होगा। अन्यथा बेरोजगारी या अपर्याप्त आजिवीका की समस्या कभी समाप्त ही नही हो सकेगी इसी प्रकार इसके दुष्परिणाम आम जन को ही भोगने से बच नही पायेगा।

अपनी वित्तीय व निजी सुरक्षा की हर व्यक्ति को स्वयम न केवल जिम्मेदारी लेनी होगी बल्कि उसमें निपुण होकर ही महामारी से सात महीनो से जूझ रहा है जिसके कारण रोजगार के साधन नगण्य हो गये, गृह के राशन से ले कर हर व्यवसायिक और हर व्यापारिक व्यक्ति विशेष रूप से बी.पी.ल, ए.पी.ल व निचले माध्यमिक वर्ग की जनता के लिये आगे कुआँ और पीछे खाई जैसी घोर पीडित परिस्थियाँ पैदा हो गयी। जब वह बाहर जाकर रोज-रोटी का प्रबंध भी नही कर सकता तथा खुद को ही नही बल्कि परिवार को भी भूखा रखना पडा। कोरोना वायरस से जन्मी इस महामारी के चलते साल 2020 को ‘कोरोना काल’ का नाम दिया गया जिसने हम सभी को बार-बार हाथ धोने से लेकर साफ-सफाई रखने के मह्त्व से भी पूर्ण अवगत कराते हुये स्वच्छ्ता में रहने की आदत भी डलवाई। जो आम-तौर पर व्यक्ति की दिनचर्या का हिस्सा होना बचाव के लिये और लम्बी आयु के लिये अनिवार्य है। इसी तरह से सतर्कता के साथ ऐतिआहत बर्त्ते हुये ही निर्णय लेकर जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है। और निस्संदेह किसी भी देश की समृद्धि उसकी अर्थव्यवस्था में शामिल जी.डी.पी माप कर ही तय की जाती है जो सरकार के नही केवल देशवासियो पर अधीन है।

एक ओर इस बदलते दौर में सतर्कता से सूचना प्रोद्दोगिकी का समय पर सही लाभ उठा कर डिजीटल तकनीक द्वारा आजीविका के साधनो को पूर्णत: ठप्प होने से बचाया। जिसने नौकरिया, बच्चो की पढाई एवम उनके मनोरंजन को बनाये रखा। इसी बदलते दौर के चलते उपयोग में आये तथा और आने वाले नये साधनो का स्वागत करते हुये रोजगार को बढाने के व डिजीटल में तबदील करने के माध्यम आम-जन के सामने खुल चुके है। बी.पी.ल, ए.पी.ल व निचले मध्यम वर्ग की उन्नति ही देश को सकल रूप से समृद्ध बना सकता है।

उदाहरण के लिये, मोदी सरकार ने हाल ही में किसान बिल पास किया है जिसके अनुसार किसान अपनी उगाई सब्जियाँ , गेहूँ , चावल, दाल आदि अब केवल बिचोलियो को ही नही बल्कि बडी कम्पनियो, ठेकेदारो या खुद भी डिजीटल माध्यम से बेचने के लिये स्वतंत्र हैं। इस बिल से पहले किसानो के पास एक ही विकल्प था लेकिन अब कई और विकल्पो क लाभ सतर्कता एवम सूझ-बूझ से आमदनी दोगुनी कर सकते हैं। इस बदलते वक़्त में अगर पुरानी दुर्दशा से किसान को निजात पाना है तो किसान को भी व्यापारी बनना होगा। अब उसे भी अपने निर्णय दुसरो पर भरोसा कर नही अपनी अकल लगा कर करना होगा। किस समय कोनसी फसल उगाने से लाभ होगा से लेकर किसे बेचना है तक पूरा हिसाब-किताब अब किसान को स्वयम करना होगा। बदलते वक़्त के साथ खुद को ढाल कर ही परिस्थितियो को सुधारा जा सकता है। भारत का किसान देश की नीव है इनकी अर्थव्यवस्था में सुधार सकल घरेलु उत्पाद में बढोत्तरी लाने में अच्छा खासा योगदान दे सकते है।

©रुपम साहू

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