धर्म

मां नर्मदा की कुछ पौराणिक कथा सुनने और माई की बगिया में पूजन के बाद पूर्ण हुई परिक्रमा …

नर्मदा परिक्रमा भाग- 36

अक्षय नामदेव। रामघाट अमरकंटक में तट पूजन के बाद हम माई की बगिया की ओर जा रहे थे। अब हमारी नर्मदा परिक्रमा यात्रा अंतिम पड़ाव की ओर थी। हमने अपनी नर्मदा परिक्रमा की शुरुआत माई की बगिया अमरकंटक से की थी इसलिए उसका समापन भी माई की बगिया में होना था। हम हॉलिडे होम के सामने के रास्ते से होकर गायत्री सरोवर के पूर्वी तट जा पहुंचे। यही से बांऐ मुड़कर माई की बगिया के उत्तर तट का रास्ता है।

गायत्री सरोवर नर्मदा कुंड अमरकंटक और माई के बगिया के बीच में स्थित है। यह बांध / सरोवर आधुनिक निर्माण हैं। वर्ष 1994 95 के आसपास साल बोरर के नाम पर साल वनों की जो कटाई हुई थी उसका दुष्प्रभाव था की नर्मदा का उद्गम सूख गया था। गर्मी के दिनों में मां नर्मदा के उद्गम कुंड का पानी बिल्कुल सूख जाता था। वह अविभाजित मध्य प्रदेश का समय था। कोटा विधानसभा क्षेत्र के राजेंद्र प्रसाद शुक्ल उन दिनों सिंचाई मंत्री थे। मां नर्मदा के प्रति उनकी गहरी आस्था थी। उन्होंने सिंचाई मंत्री रहते हुए रेस्ट हाउस अमरकंटक में सिंचाई विभाग के अधिकारियों की एक बैठक बुलाई जिसमें प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों को भी बुलाया जिसमें मैं भी उपस्थित था। बैठक में सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने नर्मदा के उद्गम को बचाने के लिए सुझाव दिया कि यदि नर्मदा उद्गम के पहले बांध बना दिया जाए तो उद्गम एक बार फिर रिचार्ज हो सकता है। अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों के सुझाव के बाद उन्होंने मां नर्मदा उद्गम विकास समिति का गठन कराया तथा स्वयं अध्यक्ष बने। योजना अनुसार गायत्री सरोवर का निर्माण हुआ। इस सरोवर के निर्माण के बाद फिर कभी उद्गम नहीं सुखा, बल्कि नमी में वृद्धि हुई और हरियाली आई। बाद में बांध के महत्व को समझते हुए बाद की सरकारों ने रामघाट, कपिला संगम अरणी संगम पर भी बांध बनाया।

गायत्री सरोवर के पूर्वी तट से हम माई की बगिया जाने के लिए खड़े ही थे कि लगभग 13 साल का बच्चा हमारे पास आकर खड़ा हो गया। कहने लगा परिक्रमा वासी हैं आप,, चलिए मैं आपको माई की बगिया तक लेकर चलता हूं। मैंने उसका प्रारंभिक परिचय लिया। कौन हो? नाम क्या है तुम्हारा? स्कूल जाते हो? मेरे इन प्रश्नों के बाद उसने अपना परिचय बताते हुए उसने कहा मैं केंवट हूं तट पार कराने का मुझे अधिकार है। घर में कौन-कौन है तुम्हारे? वह कहने लगा यहां नाना के घर पर रहता हूं। पिताजी बचपन में ही खत्म हो गए थे। मां भी पिछले साल ही खत्म हुई! परिस्थितियों के कारण पढ़ाई छोड़ दी और अब नर्मदा परिक्रमावासियों को यहां से माई की बगिया तक पहुंचाता हूं। बदले में मुझे दक्षिणा मिलती है। उसी से मेरा गुजर-बसर चल रहा है। मैंने उससे सहमति जताते हुए कहा चलिए पटेल महाराज हम आपके साथ ही चलेंगे और उसके साथ साथ चलने लगे। जैसे जैसे हम माई की बगिया की ओर बढ़ रहे थे। मन में भावनाओं का सैलाब उमड़ रहा था। अब से कुछ देर बाद यह परिक्रमा पूरी हो जाएगी और यह परिक्रमा पूरी करने के बाद अपने घर चले जाएंगे और मां नर्मदा के आंचल में मिल रहे इस अपार सुख से दूर हो जाएंगे,,। मां के आंचल का सुख क्या होता है यह मां के साथ रहने पर पता नहीं चलता जब मां दूर हो जाती है तब उसका वास्तविक एहसास होता है। मेरी आंखें नम हुई जा रही थी और इधर पटेल महाराज बता रहे थे कि माई की बगिया से नर्मदा कुंड तक माई का गुप्त प्रवाह है। वह कहने लगे कि नर्मदा माई का बचपन माई की बगिया में ही बीता। उनकी पांच सहेलियां थी। मालिन, जोहिला, मलानिया, कपिला एवं गुलबकावली। इन सहेलियों के साथ मां इस मैकल पर्वत में विचरण किया करती थी। गुलबकावली मां नर्मदा को बहुत प्यारी है।कुछ बड़ी होने पर मां नर्मदा का विवाह सोनभद्र के साथ तय हुआ। मैं पटेल महाराज के हां में हां मिलाते हुए उनके साथ चल रहा था। पटेल महाराज कहने लगे कि मां नर्मदा एवं सोनभद्र जी महाराज के विवाह में सभी देवता गण उपस्थित हुए थे। बारात आने में विलंब हो रहा था इसलिए मां नर्मदा ने अपनी सहेली जोहिला को भेजा कि जाओ जोहिला देख कर आओ बारात में विलंब क्यों है ? परंतु मां नर्मदा की ही सहेली जोहिला ने मां नर्मदा को धोखा दिया और उनके गहने पहनकर मां नर्मदा का रूप धर सोनभद्र के साथ चली गई। जोहिला के धोखे को सोनभद्र महाराज भी नहीं समझ पाए। इधर सोनभद्र की बेवफाई से रूठी मां नर्मदा क्रोधवस वहां माई की बगिया से विलुप्त हुई तथा गुप्त रूप में पश्चिम की ओर जाकर वहां प्रगट हुई जहां नर्मदा कुंड बना है और वहां से पहाड़ों को चीरते, कूदते फांदते पश्चिम की ओर चली गई। उधर सोनभद्र जी महाराज मां नर्मदा के गुस्से से डर गए और पूर्व दिशा की खाई में कूद कर कुछ दूर तक विलुप्त हो गए । पटेल महाराज जो कथा हमें सुना रहे थे यह कथा हम बचपन से सुनते आए थे, किताबों में भी पढ़ा है। बालक पटेल महाराज के मुख से यह कथा सुनते सुनते हम माई की बगिया के एकदम समीप पहुंच गए। यहां माई की बगिया के पहले एक बिल्कुल पतली जलधारा पूर्व की ओर बह रही है जिसे हनुमान धारा कहा जाता है। पटेल जी महाराज ने कहा इसी हनुमान धारा को पार करने पर आपकी परिक्रमा पूर्ण होगी और उन्होंने हमें हनुमान धारा को पार कराया। उन्होंने कहा कि आप दोहराएं,, हे मां अपनी शक्ति के अनुरूप मेरे से जैसा संभव हुआ मैंने भक्ति भाव के साथ आपकी यह परिक्रमा पूरी की। मेरी परिक्रमा के दौरान मार्ग में मुझसे कोई त्रुटि या भूल हो गई हो, कोई जीव जंतु मेरे पैर के नीचे आ गए हो या यात्रा के दौरान मन, वचन, कर्म से किसी को ठेस लगी हो तो है मां मुझे अपना बच्चा जान क्षमा कर दीजिएगा। हमने पटेल जी महाराज के कहे वचनों को दोहराया और हनुमान धारा पारकर उन्हें श्रद्धा पूर्वक दक्षिणा भेंट दी और उन्हें प्रणाम किया और नर्मदे हर का कर उनसे विदा ली।

अब हम माई की बगिया मे थे। हमारे माई की बगिया पहुंचते ही वहां के पुजारियों ने हमें हाथों हाथ लिया तथा आत्मीय भाव से नर्मदे हर कहकर हमारा अभिनंदन किया। वहां हमने देखा कि हम से पहले और भी परिक्रमा वासी परिक्रमा पूर्ण कर पूजा के इंतजार में बैठे हैं। अनेक परिक्रमा वासी संकल्प लेकर परिक्रमा प्रारंभ करने की तैयारी में थे। हम वहां माई की बगिया की सीढ़ियों में बैठ गए। बहुत शांति का अनुभव हो रहा था। अन्य परिक्रमा वासी भी वहीं बैठे थे। हम आपस में एक दूसरे से परिचय इत्यादि प्राप्त कर रहे थे तथा परिक्रमा में अपने-अपने अनुभव भी साझा कर रहे थे। सभी परिक्रमा वासी आध्यात्मिक भाव से परिपूर्ण थे। अनेक पैदल परिक्रमावासियों के पैरों में छाले पड़े हुए थे उसके बावजूद भी उनके धैर्य एवं भक्ति भाव में कोई कमी नहीं दिख रही थी।

कुछ देर इंतजार के बाद हमारी पारी आई और माई के बगिया के पुरोहित जी ने हमें बैठा कर विधि विधान से मां नर्मदा की पूजा संपन्न कराई। पात्र में हम जो नर्मदा जल रखे थे उसका कुछ जल चरणोंदक कुंड में प्रवाहित किया तथा थोड़ा जल चरणोदक कुंड से लेकर पात्र में डाला तथा हमें निर्देशित किया कि अब यह नर्मदा जल लेकर आपको निकट भविष्य में ओमकारेश्वर तीर्थ में जाकर भगवान भोलेनाथ को समर्पित करना है उन्हें अभिषेक करना है। मां नर्मदा का विधि विधान से पूजन अर्चन करने के बाद हमने पुरोहित जी को भक्ति भाव से दक्षिणा देकर उनका चरण स्पर्श किया। परिक्रमा पूर्ण होने पर कढ़ाई प्रसाद चढ़ाने का विधान है सो हमने माई की बगिया में माई के धूने में ही कढ़ाई प्रसाद चढ़ाकर प्रसाद वितरित किया तथा स्वयं भी ग्रहण किया। हमें खुशी हो रही थी कि हमने नर्मदा परिक्रमा करने का जो संकल्प लिया था उसे माता पिता के आशीर्वाद एवं परिजनों की शुभकामनाओं से पूरा किया। माई की बगिया में बैठे-बैठे हम मां नर्मदा से प्रार्थना करते रहे की हे मां मुझे ऐसे ही अपने तट पर बार-बार बुलाते रहना अपने शरण में ही रखना और मां आपसे प्रार्थना है कि एक बार फिर मुझे अपनी परिक्रमा में बुलाना। आप के तट पर बार बार आना मुझे अच्छा लगता है।

हर हर नर्मदे                                                                 क्रमशः

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