धर्म

जबलपुर के बाद जोगी टिकरिया में कल-कल बहती है मां नर्मदा …

नर्मदा परिक्रमा भाग- 33

अक्षय नामदेव। गौर नदी एवं नर्मदा नदी के संगम का दर्शन पूजन करने के बाद अब हम आगे की परिक्रमा के लिए आगे के लिए रवाना हुए। जबलपुर से बरेला, हाथी तारा, मनेरी होकर हम निवास पहुंचे। वाहन से परिक्रमा करने वाले परिक्रमा वासियों के लिए यही मार्ग है। लॉकडाउन की स्थिति के कारण रास्ते में पुलिस जगह-जगह चेकिंग अभियान चला रही थी तथा आवश्यक पूछताछ कर रही थी। हमें इन सब बातों का सामना नहीं करना पड़ा। निवास से बिछिया होते हुए हम शहपुरा, विक्रमपुर, शाहपुर होकर हम डिंडोरी के जोगी टिकरिया गांव पहुंचे।

जोगी टिकरिया डिंडोरी में नर्मदा के उत्तर तट का गांव है। यहां पहुंचते-पहुंचते शाम के लगभग 5:45 बज चुके थे। जोगी टिकरिया नर्मदा पुल के लगभग दो किलोमीटर पहले ही परिक्रमा वासियों के लिए मार्ग संकेतक लगा था ताकि पुल पार करने की भूल ना हो जाए पर हम बांए ना मुड़कर सीधे पुल के नीचे जोगी टिकरिया नर्मदा तट पहुंचे। हमें माता की संध्या आरती करनी थी। पुल के नीचे नर्मदा तट पर पहुंचकर हमने नर्मदा मां का पूजन अर्चन किया और लगभग आधे घंटे हम नर्मदा तट पर ही बैठे रहे।

डिंडोरी में नर्मदा के उत्तर तट का संध्या दर्शन अत्यंत सुखदाई लग रहा था। यहां नर्मदा तट का नजारा देखने योग्य है। कल कल छल छल गति नर्मदा की धारा को देखकर सुख की अनुभूति हो रही थी। जोगी टिकरिया नर्मदा तट पर अनेक श्रद्धालु आकर नर्मदा की तक पूजा एवं दीप दान कर रहे थे। हमने भी दीपदान किया और तट के ऊपर आ गए। इस बीच हमारे वरिष्ठ साथी परिक्रमावासी तिवारी तट के ऊपर ही थे और रात्रि विश्राम की उचित जगह देख रहे थे।

इस बीच एक ही स्थानीय जानकार ने बताया कि यहां से आगे अब वाहन द्वारा सड़क मार्ग के परिक्रमा वासियों को नर्मदा का तट दर्शन सीधे अमरकंटक में ही होगा इसलिए सीधे अमरकंटक ही जाकर विश्राम करना उचित निर्णय होगा। सोच समझकर हमने उनकी सलाह को आत्मसात करने का निर्णय लिया और वहां तट पर स्थित मंदिर के सामने चाय की दुकान में बैठकर चाय पी। वहां चाय की दुकान में पहले से बैठे एक श्रद्धालु ने बताया कि यहां जोगी टिकरिया में एक कोमल दास नाम के बाबा रहते थे जो सुबह से शाम नर्मदा के घाट की सफाई करते रहते थे। वे महात्मा नर्मदा तट की साफ सफाई को ही माता की पूजा अर्चना भजन मानते थे।अब उनकी समाधि लग गई है तथा वहां अब एक दूसरे संत रहते हैं।

जोगी टिकरिया में संध्या वंदन तट पूजन के बाद हम सीधे अमरकंटक पहुंचने का कार्यक्रम निश्चित करते हुए वहां से निकल पड़े। शाम के लगभग 7:30 बजे थे। जोगी टिकरिया नर्मदा घाट से हम वापस उसी जगह आए जहां नर्मदा परिक्रमा वासियों के लिए बांए मुड़ने का संकेत है। वहां से हम सीधे राजेंद्र ग्राम मार्ग में चल पड़े। हम देख रहे थे कि रात्रि होने के बावजूद भी अनेक पैदल परिक्रमावासी रास्ते में चल रहे थे हालांकि ऐसा हमें कहीं दिखा नहीं कि सूर्यास्त के बाद परिक्रमा मासी रास्ते में पैदल चलते दिखे इसके बावजूद मार्ग में मिलते परिक्रमा वासी इस बात का संकेत दे रहे थे कि विश्राम की कहीं उचित जगह नहीं मिली।

हम दमहेड़ी,लीला, हर्रा टोला के रास्ते सांधा तिराहा राजेंद्रग्राम पहुंच गए तथा उस तिराहे से हम राजेंद्रग्राम, पोड़की अमरकंटक मार्ग पकड़ कर आगे बढ़ने लगे।

पहले हमें लगा था कि हम रात्रि 9:00 बजे तक अमरकंटक पहुंच जाएंगे परंतु समय 9 से ज्यादा होने लगा तो हमने अमरकंटक पहुंचने के बजाय रात्रि विश्राम धर्मपानी आश्रम में करने का निर्णय लिया क्योंकि अधिक रात्रि होने पर अमरकंटक में विश्राम के लिए जगह ढूंढने में असुविधा हो सकती थी। धर्म पानी आश्रम अमरकंटक मां नर्मदा पंचकोशी परिक्रमा क्षेत्र में है जहां हमारा आना जाना वर्षों से है। वहां के महात्मा सन्यासी रामानंद महाराज से हमारा आत्मिक संबंध रहा है इसलिए वहां कुछ देर रात्रि पहुंचने में भी हमें संकोच ना था।हमने महात्मा को फोन पर आश्रम में पहुंचने की सूचना दे दी थी।

पोड़की गांव के पहले मुख्य मार्ग में मुझे एक किराने की दुकान दिखी जो अब तक खुली थी। वहां रुक कर हमने कुछ किराना सामग्री खरीद ली ताकि जरूरी होने पर हम भोजन बना सके।

रात लगभग 10:00 बजे हम धर्म पानी आश्रम पहुंच गए। महात्मा रामानंद हमारा इंतजार ही कर रहे थे। उन्होंने हमारा आत्मिक स्वागत किया।हम बैठकर कुछ देर महात्मा से नर्मदा परिक्रमा के अनुभवों को साझा करते रहे। तभी आश्रम के भैया ने जानकारी दी कि भोजन तैयार हो गया है आप सब भोजन कर ले। हम सबने रात लगभग 10:45 बजे भोजन किया। रात्रि ज्यादा हो रही थी तथा सुबह हमें धर्म पानी के सूर्योदय का नजारा देखना था इसलिए हम सुबह जल्दी उठने की इच्छा के साथ आश्रम में चटाई बिछाकर सो गए।

हर हर नर्मदे

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