लेखक की कलम से

ठुकराने के बाद

ग़ज़ल

तुम उसे कब तक बटोरोगे बिखर जाने के बाद

वो न लौटेगा कभी महफ़िल से ठुकराने के बाद

वक़्त रहते कश्तियाँ, कर दो किनारे पर खड़ी

तुम हटाओगे इन्हें क्या, बाढ़ आ जाने के बाद

क्या ख़बर ये कौन सा है दर्द जो घटता नहीं

रोज़ बढ़ जाता है अक्सर और सहलाने के बाद

डाल पर जब तक खिले हैं, ख़ूब महकेंगे हुज़ूर

फूल ये ख़ुशबू न देंगे, ख़ुद ही मुरझाने के बाद

आ से होती आग, “भ”से भूख होती है जनाब

सिर्फ़ येही कह सका वो ख़ूब हकलाने के बाद

ज़िन्दगी का ये सफ़र, जदोजहद से ही भरा

सिर्फ़ चिल्लाया कोई पर्वत से टकराने के बाद

तुम ही समझाओ उन्हें, ये रास्ता काँटों का है

आजतक समझे नहीं वो, मेरे समझाने के बाद

                           ( सवालों की दुनिया )

©कृष्ण बक्षी

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