लेखक की कलम से

आगाज़ ए जश्न

आग़ाज़ ए जश्न आज फिर..
दस्तक दे रहा है खुशियों की, साथ दर्द लिए ओमोक्रोम का
आओ खुशियां मनाते है पर बात भूल नही पाते है
आओ आज जश्न मनाते है दर्द पुराना भूल नही पाते है
यूँ ही कोई पलायन नहीं करता जो पिछले वर्ष हुआ
उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या थी पर आज भी
क्यो भूल उन्हें हम नही पाते है

आग़ाज़ ए जश्न आज फिर…
दस्तक दे रहा है खुशियों की,साथ दर्द लिए ओमोक्रोम का
होते रहे वे बेचैन,बेबस और मजबूर वापिस जाने को
सामने होते बच्चों के रोते चेहरे भूख से तड़फते
मौन-उदास चेहरे बीबी के भविष्य की चिंता लिए
और चिंतित बूढ़े माता-पिता की लाचारी
क्यो भूल उन्हें हम नही पाते है

आग़ाज़ ए जश्न आज फिर…
दस्तक दे रहा है खुशियों की,साथ दर्द लिए ओमोक्रोम का
दिखती केवल इनकी भूख साफ साफ
पेट भरने की मजबूरी तभी पलायन करते अपने गाँव से
इसलिये अपना गाँव छोड़ने को होते मजबूर
होती कभी स्वर्णिम भविष्य की चिंता मन मे
क्यो भूल उन्हें हम नही पाते है

आग़ाज़ ए जश्न आज फिर…
दस्तक दे रहा है खुशियों की,साथ दर्द लिए ओमोक्रोम का
ऊँची पढ़ाई और अच्छी नौकरी की होती मंशा दिल मे
यश-शोहरत की होती लालसा तभी बसते घर से दूर
तब छोड़ जाते वह अपना देश व परिवार
आती जब आपदा और युद्ध से होते आक्रान्त देश
क्यो भूल उन्हें हम नही पाते है

आग़ाज़ ए जश्न आज फिर…
दस्तक दे रहा है खुशियों की,साथ दर्द लिए ओमोक्रोम का
चल पड़े सब अपने गाँव लेकर अपना साजो-सामान
बुढ़े,बच्चे,औरतें सर पर लिये गठरी दर्द लिए
निकल पड़े पैदल ही जायेंगे ना जाने कितनी दूर
रही ना सोशल डिस्टेंस,महामारी का डर नहीं
क्यो भूल उन्हें हम नही पाते है
आग़ाज़ ए जश्न आज फिर…
दस्तक दे रहा है खुशियों की,साथ दर्द लिए ओमोक्रोम का
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद

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