लेखक की कलम से
पुरुष की नजर में अच्छी औरत …
कड़वा है मगर सच है।
- हरदम जो चुपचाप हो, कर्मों में हो लिप्त।
व्याप्त रहे अज्ञानता, भीतर से हो रिक्त।
- बंधन में बंधी रहे, गाये जो गुणगान।
मुझको पूरा मान दे, मुझ पर ही दे जान।
- सबकी बातें वो सुने, रहे हमेशा मौन।
मैं गैरों के संग हूँ, पूँछे क्यूँ था कौन।
- मैंने जो हँसकर दिया, रहे उसी में लीन।
मुझको माने देवता, समझे खुद को हीन।
- घूँघट डाले घर रहे, सह जाए हर वार।
उसकी हर प्राथमिकता, हो उसका परिवार।
- मान नहीं जो घर मिले, फिर भी दे सम्मान।
भूले अपने आपको, बदले हर पहचान।
- मुझसे नीचे ही रहे, ले जो मैं दूँ दान।
घर के सारे काम का, रखती हो वो ज्ञान।
- मैं जब चाहूँ प्रेम दूँ, दे हर इच्छा त्याग।
मेरी हो ढपली सदा, मेरा ही हो राग।
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ज्ञानी नारी संग हो, हो पुरुष परेशान।
इसको केवल चाहिए, प्रेम समर्पण मान।
©श्रद्धान्जलि शुक्ला, कटनी, मध्य प्रदेश